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पन्द्रहवाँ परिच्छेद आप उपशम के आगार मुनि महाराज हो गये हैं, अतएव आपको बारंबार वन्दन करता हूँ।"
इस प्रकार मुनिराज अजीतसेन की स्तुति करने के बाद श्रीपाल ने अपने पिता का राज्य छोड़कर शेष समस्त राज्य का उत्तराधिकारी अजीतसेन के पुत्र गजगति को नियुक्त किया। इस तरह पुण्यबल से श्रीपाल ने नाना प्रकार से स्वकार्य की सिद्धि की और स्वजन-स्नेही तथा सज्जनों को सुखी किया। अनन्तर उन्होंने चम्पानगरी में प्रवेश किया। उस समय प्रजा ने समूची नगरी को उत्तमतापूर्वक सजाया था। चारों ओर ध्वजा-पताकारें लहरा रही थीं। रास्ते में छाया करने के लिये वस्त्र बाँध दिये गये थे। स्थान-स्थान पर नाटकों का अभिनय हो रहा था। रम्भा जैसी सुन्दरियाँ मंगलगान गा रही थीं। आज चम्पानगरी के सामने सुरपुरी भी फीकी मालूम हो रही थी। दूसरी ओर श्रीपाल कुमार अपने ऐश्वर्य और बल-विक्रम के कारण इन्द्र से भी बढ़े चढ़े मालूम होते थे। ___ जिस समय चम्पानगरी के रास्तों पर श्रीपाल की शानदार सवारी निकली, उस समय चारों ओर आनन्द और उत्साह की लहरें उठ रही थीं। रास्ते में स्थान-स्थान पर स्त्री-पुरुष मोतियों से थाल भर-भरकर श्रीपाल की अभ्यर्थना करते रहते थे। उस समय स्त्रियों के कंकण, नेपुर और कटि
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