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तेरहवाँ परिच्छेद चाहते हैं और आठ तरह की बुद्धि से युक्त मनुष्य जिस प्रकार सिद्धि को चाहता है, उसी प्रकार श्रीपाल कुमार आठ रानियों से युक्त होने पर भी अपनी प्रथम पत्नी मैनासुन्दरी को चाहने लगे। उससे मिलने और माता को प्रणाम करने के लिये वे लालायित हो रहे थे। इसी लिये
और अधिक दिन वहाँ न रहकर उन्होंने स्वदेश की ओर प्रस्थान किया।
रास्ते में अनेक राजाओं से अधीनता स्वीकार कराते और अनेक राजाओं से भेंट-नजर लेते हुए श्रीपाल कुमार एक चक्रवर्ती की भाँति अग्रसर हो रहे थे। उनके साथ बहुत बड़ी सेना थी। अतः वे जिधर ही जा निकलते उधर ही धूम मच जाती। क्रमशः महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, मेवाड़, लाट, भोट आदि अनेक देश के राजाओं को अधीन करते हुए वह मालव देश में जा पहुँचे।
मालवदेश के राजा प्रजापाल ने जब यह समाचार सुना कि कोई राजा युद्ध करने आ रहा है, तब वह भी उज्जयिनी गढ़ में युद्ध की तैयारियाँ करने लगा। अन्न, वस्त्र, जल आदि आवश्यक पदार्थ अधिक-से-अधिक परिमाण में एकत्रित किये गये और नगर के बाहर रहनेवाले लोग भी किले के
अन्दर सुरक्षित स्थान में आ बसे। चारों ओर आतंक छा गया। सब लोग युद्ध की आशंका से भयभीत हो रहे थे। इसी
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