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श्रीपाल-चरित्र
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प्रजापाल को प्रणाम कर कहा :-"पिताजी! मेरी बातें याद कीजिये। कर्म ही प्रधान है। उसके सामने हम सब लोग किसी हिसाब में नहीं हैं। देखिये, कर्मयोग से मुझे जो पति मिले थे, उन्होंने इस समय अपनी कैसी उन्नति की है।”
इतना कह, मैनासुन्दरी ने राजा प्रजापाल से श्रीपालका परिचय कराया। इस बार उनकी ओर देखते ही प्रजापाल उन्हें पहचान गये। इससे सीमातीत आनन्द हुआ। उन्होंने गद्गद होकर कहा:- “कुमार ! मैं आपको पहचान न सका। आपने भी गम्भीर और गुणवान होने के कारण स्वयं अपना परिचय न दिया। आपकी यह सब सुख-सम्पत्ति और वीरता देखकर मुझे असीम आनन्द हो रहा है। धन्य है आपको!"
श्रीपाल ने कहा :-"राजन् यह सब नवपद के माहात्म्यका प्रताप है। इसी के प्रसाद से यह सब ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त हुई है, मेरी वीरता के कारण नहीं।"
प्रजापाल ने कहाः- "बड़े लोग अपनी वीरता को कभी भूल कर भी महत्व नहीं देते। इसमें भी कोई सन्देह नहीं, कि इष्टदेव और गुरुकी कृपा से वाञ्छित फल की प्राप्ति भी अवश्य होती है।" ___ दामाद और ससुर दोनों में इसी तरह की बातें होने लगीं। एक दूसरे की बातों से वे बड़े ही आनन्दित होने लगे। इसी समय समूचे नगर में यह बात विद्युत वेग से फैल गयी, कि उज्जयिनी को घेरा डालनेवाला कोई शत्रु
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