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चौदहवाँ परिच्छेद
अपमान का बदला जिस समय श्रीपाल कुमार अपने निवास स्थान में पहुँचे, उस समय वहाँ दो स्त्रियाँ बातचीत कर रही थीं। उनमें एक स्त्री उनकी धर्म-पत्नी और दूसरी माता थी। दोनों में इस प्रकार की बातें हो रही थीं :___माता ने कहा :- “बहू ! इस समय किसी शत्रु ने नगरी को चारों ओर से घेर लिया है। समूचे शहर में हाहाकार मचा हुआ है। सबको यही चिन्ता लगी हुई है, कि न जाने क्या होगा। खैर, मुझे इन सब बातों की फिक्र नहीं है। हम लोगों के पास थोड़ा बहुत जो सामान है, वह भी यदि चला जाय तो मुझे कोई पर्वाह नहीं, किन्तु मेरा जीवन-धन, मेरी आँखों का तारा, वह श्रीपाल जहाँ हो, वहाँ सुखी रहे। जबसे वह विदेश गया, तब से हम लोगों को उसकी कोई खोज-खबर नहीं मिली। उसे देखने के लिये मेरा जी छटपटा रहा है। बिना उसको देखे, अब मुझे अपना जीवन भाररूप मालूम हो रहा है। न जाने अब मैं कौन सा सुख देखने के लिये जी रही हूँ?"
सास की यह बात सुनकर श्रीपाल की स्त्री मैनासुन्दरी ने कहा :- “माताजी! इस प्रकार आप दु:खी क्यों हो रही है? सिद्धचक्र के प्रताप से सब भला ही होगा। आपके पुत्र
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