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श्रीपाल-चरित्र
१२७ समय श्रीपाल कुमार सदल-बल उज्जयिनी आ पहुँचे। राजा को जब यह मालूम हुआ तो उसने तुरन्त किले के फाटक बन्द करा दिये। यह सुन श्रीपाल ने नगर के बाहर ही अपना शिविर स्थापित कर चारों ओर से उज्जयिनी को घेर लिया।
श्रीपाल कुमार ने नगरी को घेर तो लिया, किन्तु उनके हृदय में उसे अधिकृत करने की इच्छा उतनी प्रबल न थी, जितनी अपनी माता और स्त्री से मिलने की थी। इस इच्छा को रोक रखना उनके लिये अब बहुत ही कठिन हो पड़ा। इसलिये वे उसी रात को एक गुप्त-मार्ग से अपने निवासस्थान में जा पहुँचे, किन्तु किसी को बुलाने या घर में प्रवेश करने के पहले वे कुछ देर के लिये बाहर ही ठहर गये और घरके अन्दर जो बातचीत हो रही थी, उसे सुनने लगे।
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