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बारहवाँ परिच्छेद
दृष्टि पास ही रखे हुए पुतलेपर जा पड़ी। श्रीपाल कुमार ने सिद्ध चक्र का ध्यान कर ज्योंही उस पुतले के शिर पर हाथ रखा, त्योंही वह जड़ पुतला चैतन्य हो उठा। उसने देखते-हीदेखते राज - कन्या एवं उसकी पाँचों सखियों की समस्याओं की यथोचित पूर्ति कर दी।
पुतले का यह अद्भुत कार्य और श्रीपाल की अलौकिक शक्ति देख कर सब लोग आश्चर्य से स्तम्भित हो गये। उसी समय राज कुमारी एवं उसकी सखियों ने अपना तन-मन श्रीपाल को समर्पित कर दिया। राजा ने भी उसी समय यह हर्ष - संवाद सुना । अपनी कन्या को योग्य पति मिलने के कारण वह बड़ा ही प्रसन्न हुआ । अनन्तर कुछ समय के बाद उसने श्रीपाल के साथ बड़ी धूम-धाम से राज - कन्या और उसकी पाँचों सखियों का विवाह कर दिया। इस बार श्रीपाल कुमार एक-से-एक बढ़कर, विदुषी और रूपवती छह स्त्रियों को पाकर, मन-ही-मन अपने भाग्य की सराहना करने लगे।
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