________________
गया।
१२२
तेरहवाँ परिच्छेद वहां से चले आये थे। इससे वहाँ पहले तो बड़ा हाहाकार मच गया; किन्तु पश्चात् अपने पराक्रमों के कारण वे छिपे न रह सके। अपना चातुर्य और बल दिखा कर जिस समय वे नया विवाह करते, उस समय उनके मामा को उनका पता चल जाता था। अन्त में उन्होंने उन्हें बुला लाने के लिये कोल्लागपुर की ओर दूत रवाना किये। वे यथासमय श्रीपाल से आ मिले, और उन्हें उनके मामा का सन्देश कह सुनाया।
श्रीपाल कुमार भी अब अपने देश की ओर लौटना चाहते थे, इसलिये उन्होंने भिन्न-भिन्न स्थानों में रखी हुई अपनी रानियों को बुला भेजा। कुछ ही दिनों में सब रानियाँ आ पहुँची। सभी के साथ अंग-रक्षक के रूप में कुछ-न-कुछ सैनिक भी आये थे। अनन्तर श्रीपाल कुमार पुरन्दर राजा से बिदा ग्रहण कर, उन सबो के साथ, थाणापुरी की ओर रवाना हुए और कुछ ही दिनों में वे वहाँ जा पहुंचे। उन्हें देख, वसुपाल राजा को बड़ा ही आनन्द हुआ। बड़ी धूम-धाम से वे श्रीपाल को नगर में ले गये। कुछ दिन तक श्रीपाल वहाँ बड़े आनन्द से रहे। अनन्तर अपुत्र होने के कारण वसुपाल राजा ने श्रीपाल को अपनी गद्दी पर बैठा दिया। श्रीपाल अब तक राजा होने पर भी राजा न थे, किन्तु अब वे यथानियम सिंहासनारूढ़ हो, राजा की भाँति प्रजा-पालन करने लगे।
श्रीपाल कुमार को अपनी माता से अलग हुए बहुत दिन हो चुके थे। उनका हृदय अब उनसे मिलने के लिये
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org