________________
बारहवाँ परिच्छेद
समस्या-पूर्ति हम यह पहले ही कह चुके है कि श्रीपाल कुमार नयी-नयी बातें सुनने के लिये सदा उत्सुक रहते थे। एक दिन किसी यात्री ने आकर उनसे कहाः- 'कुमार! यदि आप सुनें तो एक आश्चर्य-जनक बात आपको सुनाऊँ।'
श्रीपाल ने कहाः- "बड़ी खुशी से कहिये, मैं सुनने को तैयार हूँ।”
यात्री ने कहा:- “यहाँ से तीन सौ योजन की दूरी पर कञ्चनपुर नामक एक नगर है। वहाँ वज्रसेन नामक राजा राज करता है। उसकी पटरानी का नाम कञ्चनमाला है। उसने चार कुमार और एक कुमारी को जन्म दिया है। कुमारी का नाम त्रैलोक्यसुन्दरी है। वह बड़ी ही रूपवती है। इस समय उसकी अवस्था विवाह करने के योग्य हो गयी, अतः राजा ने उसके स्वयंवर के लिये एक विशाल मण्डप बनवाया है। उस मण्डप के स्तम्भों पर मणि और काञ्चन से बनी हुई पुतलियाँ बैठाई गयी हैं। अभ्यागतों के स्वागतार्थ बहुत ही उत्तम प्रबन्ध किया गया है। स्वयंवर के लिये आषाढ़ शुक्ला पञ्चमी का दिन निर्धारित किया जा चुका है। यह समारोह आप जैसे राज-कुमार के लिये
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org