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श्रीपाल-चरित्र
कर सकता। यह मेरा पुत्र है। बहुत दिन हुए कुछ अप्रसन्न होकर चुपचाप न जाने कहाँ चला गया था। आज ईश्वर की कृपा से यहाँ अचानक भेंट हो गयी। यह सब मेरे परिवार के ही लोग हैं। केवल इसी पुत्र के बिना मेरा घर अन्धकार मय हो रहा था। आज इसके मिल जाने से हम लोगों का वह दुःख दूर हो गया । इसके लिये उस परमात्मा को, साथ आपको भी मैं अनेकानेक धन्यवाद देता हूँ।"
भाँडकी यह बातें सुन, राजा बड़ी चिन्ता में पड़ गये। उनका जी सूख गया। वे अपने मन में कहने लगे:--"हाय ! मैं यह क्या कर बैठा! बिना जाति-पाँति और कुल जाने मैंने इसके साथ अपनी कन्या का विवाह क्यों कर डाला। वास्तव में यह कार्य बड़ा ही अनुचित हो गया। भाँडकी बातों पर सन्देह करने का भी कोई कारण नहीं; क्योंकि यह सब इसके स्वजन-सम्बन्धी ही मालूम होते हैं। अफसोस! इसने हम सबको धर्म-भ्रष्ट कर दिया।"
इन विचारों के कारण राजा के मनमें बड़ी खलबली पैदा हो गयी। उसने तुरन्त नैमित्तिक को बुला भेजा। नैमित्तिक उसी क्षण सभा में आ, उपस्थित हुआ। उसे देखते ही राजा के क्रोध का ज्वालामुखी फट पड़ा। उसने गरज कर कहाः"क्यों रे, नैमित्तिक! मेरे साथ यह चाल! विश्वासघात ! तूने पहलेसे क्यों न बतलाया कि यह जाति का भाँड हैं।"
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