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दसवाँ परिच्छेद उन्होंने दासी द्वारा यह समाचार रानियों के पास भेजा, कि श्रीपाल ने तुम्हें बुलाया है, त्योंही वे पालकी में बैठ, मन्त्रियों के साथ चल पड़ीं। उन्हें देख कर राजा को बड़ा ही हर्ष हुआ। श्रीपाल को इतने दिनों के बाद सकुशल देख, रानियाँ भी मारे आनन्द के फूली न समाती थीं। इस समय उन्हें अवर्णनीय आनन्द हो रहा था।
राजा ने शीघ्र ही उन दोनों से श्रीपाल का वंश-परिचय पूछा। तुरन्त ही विद्याधर की कन्या ने सारा हाल राजा को कह सुनाया। उसने स्वयं यह सब बातें विद्याचरण मुनि के मुँह से सुनी थीं। श्रीपाल का समस्त पूर्व-वृत्तान्त सुनाने के बाद उसने कहा :- "हम लोग रत्नद्वीप से प्रस्थान कर स्वदेश की ओर आ रहे थे। रास्ते में धवल सेठ नामक एक दुष्ट बनिये ने इन्हें समुद्र में ढकेल दिया था; किन्तु पुण्य के प्रताप से आज फिर हमलोग इन्हें अपने बीच में देख रही हैं।"
श्रीपाल कुमार का परिचय प्राप्त कर, राजा को अत्यन्त आनन्द हुआ। वे तुरन्त ही उन्हें पहचान गये। कहने लगे:यह तो मेरे भानजे लगते हैं। जो हुआ सो अच्छा ही हुआ। यद्यपि मैंने बिना जाने-बूझे ही इनके साथ अपनी कन्या का विवाह कर दिया था, किन्तु सौभाग्यवश यह सम्बन्ध मणि और कञ्चन के योग जैसा ही हुआ है।”
जिस भाण्ड-मण्डली ने श्रीपाल को अपना सम्बन्धी सिद्ध करने की चेष्टा की थी, उसपर राजा को अब बड़ा ही क्रोध आया। उसने उन सबोंको धमका कर पूछा:-“सच
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