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श्रीपाल - चरित्र
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श्रीपाल कुमार की यह बातें सुन, वे सब लोग और भी उनकी दिल्लगी करने लगे। कहने लगेः - "सच है, वामन महाराज ! राज कुमारी तुम्हें न पसन्द करेगी तो भला और किसे करेगी? आइये, शौक से वीणा बजाना सीखिये । "
इसी तरह लोगों की हँसी दिल्लगी और ताने सुनते हुए श्रीपाल गायनाचार्य के निकट पहुँचे । उसके पास पहुँचते ही उन्होंने एक बहु-मूल्य खड्ग उसे अर्पण किया! रुपये में बड़ी शक्ति होती है । वह सब विघ्न-बाधाओं को दूर कर देता है । खड्ग देखते ही गायनाचार्य का चेहरा मारे खुशी के खिल उठा । उसने श्रीपाल को अपने पास बैठा कर उन्हें एक वीणा दी। स्वर तथा नाद आदि के स्थान बताकर बजाने को कहा । श्रीपाल को वीणा बजाने का अभ्यास तो था ही नहीं, अतः उसे हाथ में लेते ही उसके तार टूट गये। यह देखकर गायनाचार्य की समस्त शिष्य मण्डली ठठा कर हँस पड़ी । सभी कहने लगे :- "वाह ! एक ही हाथ में वीणा की सफाई ! बजानेवाला हो तो ऐसा ही हो !”
श्रीपाल ने इन दिल्लगियों की कोई पर्वाह न की । उन्होंने अपना अभ्यास जारी रक्खा, किन्तु यह केवल दिखावे का अभ्यास था। वास्तव में श्रीपाल को कुछ भी सीखना न था । सिद्धचक्र के प्रताप से उन्हें बिना सीखे ही इस कला में पारदर्शिता प्राप्त हो चुकी थी; किन्तु उन्होंने किसी से भी यह भेद बताना उचित न समझा ।
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