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दसवाँ परिच्छेद
नैमित्तिक ने कहा :-“सरकार! मैंने जो उस समय कहा था, वही मैं अब भी कह रहा हूँ। यह अनेक मातंगों का स्वामी है। मेरी बात कभी झूठी नहीं हो सकती।"
राजा ने नैमित्तिक की यह बातें समझना तो दूर रहा; पूरे तौर से सुना भी नहीं। उसे नैमित्तिक और श्रीपाल दोनों पर बड़ा क्रोध आया। उसने दोनों का प्राण ले, अपने क्रोध को शान्त करना स्थिर किया। मन-ही-मन वह इसके लिये आयोजन करने लगा।
नगर में चारों ओर विद्युत-वेग से यह समाचार फैल गया। राज-कुमारी मदनमञ्जरी को भी यह बात शीघ्र ही मालूम हो गयी। वह उसी समय अपने पिता के पास पहुँची। उसने उन्हें समझाते हुए कहा :- “पिताजी ! जो कुछ करना हो, वह सोच-विचार कर कीजियेगा।” बिना बिचारे जो करे, सो पाछे पछिताय। “इन भाँडों की बात का खयाल न करिये। इसमें मुझे कुछ रहस्य मालूम होता है। रह गयी, कुमार के कुल और वंश की बात, सो यह किसी के छिपाये नहीं छिपती। मनुष्य के आचरणों से उसके कुल और जाति की परीक्षा हो जा सकती है। इसलिये आप किसी बात का दुःख न करें। अच्छी तरह सोच-विचार करने के बाद ही कोई कार्य करें।" । ____ कुमारीकी यह बातें सुन, राजाने कुमार को अपने पास बुला कर कहाः-'अपने कुल और वंश का मुझे परिचय
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