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दसवाँ परिच्छेद भाँडों की यह बात सुन, राजा ने थगीधर को संकेत किया। श्रीपाल तुरन्त ही भाँडों को पान देने के लिये उठ खड़े हुए। उनकी प्रतिष्ठा बढ़ाने का इससे बढ़कर दूसरा उपाय न था। ज्यों ही श्रीपाल कुमार उस बूढ़े भाँड के समीप पहुँच कर उसे पान देने लगे, त्यों ही वह आँखें फाड़-फाड़ कर उन्हें देखने लगा। कई बार नीचे से ऊपर तक निगाह डालने के बाद, वह हँसता हुआ, कुमार के गले से चिपट गया और कहने लगा कि:-“वाह बेटा! आज न जाने मैं किसका मुँह देख कर उठा था, कि इतने दिनों के बाद तुझसे भेंट हुई। बेटा ! तू हम लोगों को छोड़ कर कहाँ चला गया था? आज तुझे इस तरह जीता-जागता और स्वस्थ देखकर हमें बड़ा ही आनन्द हो रहा है।"
बूढ़े की बात पूरी भी न होने पायी थी, कि दूसरी ओर से एक बुढ़िया आकर बेटा-बेटा कहती श्रीपाल के शरीर से चिपट गयी। फिर तो मानो स्वजन-स्नेहियों का ताँता ही बँध गया। एक स्त्री श्रीपाल की बहन बन गयी, एक लड़का भाई बन गया, एक आदमी मामा बन गया, एक जन भानजा बन गया, एक बुढ़िया काकी बन गयी, एक स्त्री मामी बन गयी। इसी तरह सभी भाँड़ों ने कोई-न-कोई रिश्तेदारी निकाल कर श्रीपाल को चारों ओर से घेर लिया और इस प्रकार हर्ष व्यक्त करने लगे, मानों वास्तव में बरसों से बिछुड़े हुए किसी मनुष्य से भेंट हुई हो। अन्त में उस वृद्ध भाँड ने राजा से कहा :"हे राजन् ! आज मुझे जो आनन्द हो रहा है, वह मैं वर्णन नहीं
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