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श्रीपाल-चरित्र
भाँडने कहा :- “हम लोग रुपयों के ही लिये तो नाचते-गाते और दर-दर मारे फिरते हैं। रुपया मिले तो संसार में ऐसा कोई कार्य नहीं, जो हम न कर सकें।”
धवल सेठ ने कहा:-"अच्छा, सुनो। इस राजा के दरबार में जो धगीधर है, उसे तुम लोग अपना जाति-बन्धु
और नाते-रिश्तेदार बताकर उसके गले से लिपट जाओ। यह काम इतनी सफाई के साथ करना होगा, जिसमें देखने वालों के मन में दृढ़ धारणा हो जाय, कि वह तुम्हारा ही जाति बन्धु है। यदि यह काम तुम अच्छी तरह कर सको तो मैं तुम्हें एक लाख रुपये नकद दूंगा।”
भाँडने कहा:-"बस, अब आपको अधिक न कहना होगा, हम ऐसा हुनर दिखावेंगे, कि किसी को जरा भी सन्देह न होने पायेगा। जब हम आपका यह काम पूरा कर दें, तब हमें हमारी मेंहनत के रुपये और इनाम दोनों दीजियेगा।"
इस प्रकार धवल सेठ से सब बातें तय हो जानेपर, भाँडोंका यह दल राज-सभा में पहुंचा। वहाँ बड़ी देर तक नाच-गान और हँसी-दिल्लगी द्वारा राजा का मनोरञ्जन करते रहे। अन्त में राजा ने प्रसन्न होकर कहा:- “तुम्हें जो इच्छा हो, माँग लो। मैं सहर्ष देने को तैयार हूँ।” भाँड़ों ने कहाः"राजन् ! हम आपही का अन्न खाते हैं। आपकी कृपा से हमें रुपये पैसे की कमी नहीं है यदि आप प्रसन्न हैं तो कोई ऐसी कृपा कीजिये, जिससे हमारी प्रतिष्ठा में वृद्धि हो।"
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