________________
दसवाँ परिच्छेद
पुरुष का इतिहास बड़ा ही विचित्र है । यह न जाने कहाँ से आ पहुँचा। समुद्र के तट पर एक दिन सो रहा था । वहाँ से लाकर राजा ने इसके साथ अपनी कन्या का विवाह कर, इसे "थगीधर' बना दिया । न जात पूछी न पाँत । बड़े आदमियों का मामला है, वर्ना न जाने क्या हो जाता ।"
|
द्वार - पाल की यह बात सुन, धवल सेठ को बड़ा ही आनन्द हुआ। वह अपने मन में सोचने लगाः- “श्रीपाल को नीच जाति का प्रमाणित कर उसे नीचा दिखाना चाहिये । यदि मुझे अपने इस कार्य में सफलता मिल गयी, तो निःसन्देह राजा क्रुद्ध हो, श्रीपाल को प्राण- दण्ड की आज्ञा दे देगा और मेरी राह का यह काँटा दूर हो जायगा । यद्यपि अब तक मैंने जितने उपाय किये, वे सभी व्यर्थ प्रमाणित हुए। फिर भी निराश होने का कोई कारण नहीं । उद्योग करने पर सभी कार्य सफल होते हैं। उद्योग ही सब सुखों का मूल है। श्रीपाल मेरा परम शत्रु है । इसे बढ़ने का अवसर कदापि न देना चाहिये। जैसे हो वैसे, इसका सर्वनाश ही करना उचित हैं !”
इस तरह सोच-विचार करता हुआ धवल सेठ अपनी नौकाओं की ओर लौट चला। वहाँ पहुँचते ही कुछ भाँड लोग गाते-बजाते उसके पास जा पहुँचे। उन्हें देखते ही धवल सेठ को एक नयी बात की कल्पना आयी । इसी समय उसने उनके अगुआको अपने पास बुलाकर कहाः- “तुम हमारा एक काम करोगे? यदि कर सको तो मैं तुम्हें मालामाल करने के लिये तैयार हूँ ।"
For Private & Personal Use Only
९०
Jain Education International
www.jainelibrary.org