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ग्यारहवाँ परिच्छेद
कुण्डलपुर की यात्रा अब श्रीपाल कुमार के दिन बड़े ही आनन्द में कट रहे थे। वे इस समय अपने श्वसुर के अतिथि थे और अपनी तीनों रानियों के साथ चैन की बंशी बजाते थे। एक दिन वे बगीचे जा रहे थे। रास्ते में उन्हें बनजारों का एक दल मिला। उस दल के सरदार को बुलाकर श्रीपाल ने पूछा :- “आप लोग कहाँ से आ रहे हैं और कहाँ जायेंगे? रास्ते में आपको कोई आश्चर्य-जनक बात तो नहीं दिखायी दी?"
सरदार ने कहा:-“महाराज! हम लोग कान्तिपुर से आ रहे हैं और कम्बुद्धीप की ओर जा रहे हैं। रास्ते में हम लोगों ने एक बड़ी ही आश्चर्य-जनक बात देखी। क्या आप उसे सुनना पसन्द करेंगे?"
श्रीपालने कहा :- “क्यों नहीं ? सुनने के लिये ही तो आपको बुलाने का कष्ट दिया है।"
सरदार ने कहा :- “महाराज ! सुनिये, यहां से करीब चार सौ कोसपर हमें कुण्डलपुर नामक एक शहर मिला। वहाँ मकरकेतु नामक एक राजा राज करता है। उसकी रानी का नाम कर्पूर तिलका है। उससे दो पुत्र और एक पुत्री उत्पन्न हुई है। वह पुत्री बहुत ही गुणवान् है। रूप में तो मानो साक्षात्
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