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श्रीपाल-चरित्र
७५ होती? आपको तो आजन्म इनके ऋणी रहना चाहिये। उनका हित-चिन्तन करना चाहिये। सौभाग्यवश उन्हें धन और स्त्रियों
की प्राप्ति हुई है। इसमें आपके लिये सन्ताप का कौन-सा विषय है? आपको तो इसके लिये प्रसन्न ही होना चाहिये। यदि आप हमारी बात न मान कर कुमार का अनिष्ट चिन्तन करेंगे, तो यह अच्छी तरह स्मरण रखिये, कि आपको लेने के देने पड़ जायेंगे।"
धवल सेठ को यह उपदेश दे, चार में से तीन तो अपनेअपने स्थान को चले गये; किन्तु एक मित्र वहीं बैठा रहा । वह कुछ नीच प्रकृति का मनुष्य था। सबके सामने तो उसने सबकी हाँ-में-हाँ मिला दी थी; किन्तु एकान्त मिलते ही धवल सेठ को उलटा पाठ पढ़ाने लगा। उसने कहा :-“इन तीनों की बातें ध्यान देने योग्य नहीं हैं। बिना पाप किये धन की प्राप्ति नहीं होती। पहले पापसे धन प्राप्त करना चाहिये। फिर धन से पाप-मुक्त हो सकता है। इसलिये मेरी तो यही सलाह है कि जैसे हो वैसे आपको अपना काम पूरा करना चाहिये। इसका सबसे बढ़िया उपाय यह है कि कुमार को मीठी-मीठी बातों से फँसाइये। उससे घनिष्टता बढ़ाइयें। जब वह बातों में
आ जाये, तब मौका देखकर उसका काम तमाम कर दीजिये। मेरी तो दृढ़ धारणा है कि इसमें आपको अवश्य सफलता प्राप्त होगी और आज जो कुमार का है, वह किसी-न-किसी दिन आपका हो जायगा।"
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