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श्रीपाल - चरित्र
न मानने का क्या फल हुआ, सो तुमने देख लिया । तुम्हारा एक संगी जान से मारा गया। तुम्हें भी बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ा। खैर, अब भी कुछ बिगड़ा नहीं। सुबह का भूला शाम को घर आ जाय, तो वह भूला नहीं कहाता । अब कभी भूल कर भी पर-धन या पर - स्त्री की इच्छा न करना । अपने मन में किसी बुरे विचार को स्थान न देना । यदि अब भी हमारी बात न मानोगे तो फिर पछताओगे ।”
पापी धवल सेठ पर मित्रों के इस उपदेश का कोई प्रभाव न पड़ा। उसके विचार ज्योंकि त्यों मैले बने रहे। वह अपने मन में कहने लगा:- "जब इतना बड़ा संकट दूर हो गया तो अब चिन्ता करने की कोई बात नहीं ।" यह सोचकर कुछ ही दिनों के बाद उसने श्रीपाल की रानियों के पास एक दूती भेज कर कहलाया कि तुम्हारा दासानुदास धवल सेठ तुम्हारे प्रेम की भिक्षा माँग रहा है। यह सुनते ही रानियों ने उसी समय दूती को गर्दन पकड़ निकाल बाहर किया; किन्तु इससे भी कामान्ध धवल सेठ को चेत न हुआ। एक दिन वह स्वयं स्त्री का वेश धारण कर धृष्टता - पूर्वक उन रानियों के पास जा पहुँचा । ज्योंही उसने अपनी पाप-दृष्टि उन सतियों पर डाली, त्योंही उसकी आँखे मानों झुलस गयीं। दासियों ने उसकी दिल्लगी उड़ा कर उसी समय निकाल बाहर किया । तदनन्तर
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