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श्रीपाल - चरित्र
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नैमित्तिक की बात में कहाँ तक सत्यता है, यह जानने के लिये उन्होंने हम लोगों को यहाँ भेजा हैं । हम देखते हैं कि, नैमित्तिक ने एक भी बात झूठ न कही थी। अब आपसे हमारी यही प्रार्थना है कि कृपया आप हमारे साथ चलिये और राजकुमारी का पाणि-ग्रहण कर राजा की चिन्ता दूर कीजिये ।
यह सब बातें श्रीपाल से निवेदन कर सरदार ने एक तेज घोड़ा मँगवाया। श्रीपाल से उसपर बैठ अपने साथ चलने की प्रार्थना की । श्रीपाल को इसमें कोई आपत्ति दिखाई न दी । वे तुरन्त अश्वारूढ़ हो, उन लोगों के साथ चल पड़े। वास्तव में कर्म की गति बड़ी विचित्र है । कल जो श्रीपाल समुद्र में पड़े हुए, जीवन मरण की समस्या हल कर रहे थे, वही आज राजा के अनुचरों द्वारा सम्मानित होकर उसके अतिथि बनने जा रहे हैं।
राजा ने ज्योंही यह समाचार सुना, त्योंही वह भी अपने परिजनों को साथ ले, श्रीपाल का स्वागत करने के लिये सम्मुख आया। रास्ते ही में दोनों की भेंट हो गयी । राजा उन्हें आदरपूर्वक अपने नगर में ले आये । नगरनिवासी भी श्रीपाल को देखने के लिये उत्सुक हो रहे थे । नगर में उनकी सवारी निकलते ही चारों ओर दर्शकों का समुद्र उमड़ पड़ा। जिसकी दृष्टि श्रीपाल पर पड़ी वही
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