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दसवाँ परिच्छेद
जिस समय दोनों रानियाँ विलाप कर रही थीं, उस समय धवल सेठ भी उनके पास जा पहुँचा और उन्हें दिखाने के लिये फूट-फूटकर रोने लगा। कुछ देर तक रोने के बाद उसने गम्भीरता धारण कर रोती हुई रानियों को दिलासा देने का ढोग करते हुए कहा:- - "सुन्दरी ! इस प्रकार रोने -कलपने में अब कोई सार नहीं है । संसार में जो मनुष्य जन्म लेते हैं, वे एक न एक दिन मरते ही हैं। कुमार तो जहाँ रहेंगे वहाँ मणि, माणिक और मुक्ताफल की भाँति शिरमौर होकर ही रहेंगे। हमें भी अब शोक करना छोड़, अपने शेष जीवन को सुखी बनाने की चेष्टा करनी चाहिये । जहाँ हम लोगों की कोई गति नहीं है, हम लोग जिस बात के लिये इच्छा करने पर भी कुछ नहीं कर सकते; उस बात के लिये, हमको अब शोक करना उचित नहीं ।"
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धवल सेठ की सन्देह जनक बातों को श्रवण कर दोनों रानियों को उसपर शंका हो गयी। वे अपने मन में कहने लगीं - "हो न हो, इसी पापी ने यह काम किया है। धन और स्त्रियों के प्रलोभन में पड़कर इसीने हमारे स्वामी को समुद्र में ढकेल दिया है। इस समय तो यह मीठी-मीठी बातें बना रहा है, किन्तु इसकी बातें कपट से भरी हुई हैं। किसी दिन अवसर मिलते ही हम लोगों का सतीत्व नष्ट करने की चेष्टा यह अवश्य करेगा। दैव ने
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