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श्रीपाल-चरित्र
जब बहुत ही अनुरोध किया तब श्रीपाल ने 'थगीधर' का पद स्वीकार करने की इच्छा प्रकट की। राजा के प्रियपात्र और गुणीजनों को पान देकर उन्हें सम्मानित करना, 'थगीधर' का कर्तव्य है। यह पद बहुत ही ऊँचा और माननीय कहलाता है। राजा ने तुरन्त ही इस पद पर श्रीपाल की नियुक्ति कर दी। अब श्रीपाल ससुराल में रहकर अपनी नव-विवाहिता स्त्री के साथ आनन्द अनुभव करने लगे।
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