________________
७४
नवाँ परिच्छेद स्त्रियों को अपनाने का विचार चित्त में आने से वह कामाग्नि से भी जलने लगा। न उसे दिन में चैन पड़ती थी, न रात में नींद आती थी। सदा वह ठण्डी आहे भरा करता था और मन की बात कार्यरूप में परिणत न करने के कारण दिन-व-दिन दुर्बल होता जाता था।
धवल सेठ की नौकाओं पर जितने मनुष्य थे, उनमें उसके चार मित्र थे। उनके साथ धवल सेठ की घनिष्ठता थी। वे चारों धवल सेठसे पूरी मित्रता रखते थे। धवल सेठ को दिन-प्रतिदिन दुर्बल होते देखकर उन्होंने एक दिन पूछा :“आप इस प्रकार दुर्बल क्यों हो रहे हैं? क्या आपको कोई रोग हुआ है या कोई चिन्ता लगी है? जो हाल हो, हमसे कहिये। हम उसका उपचार करें।"
. धवल सेठ ने अब कोई बात छिपाना उचित न समझा। चारों मित्रों से उसका दिल भी खूब मिला हुआ था। अतएव उसने लज्जा छोड़कर मनकी सब बातें उन लोगों को कह सुनायी। धवल की बातें सुन, चारों को बहुत ही आश्चर्य हुआ। वे कहने लगे:- “ऐसे पाप-विचारों को हृदय में स्थान देना भी उचित नहीं। कुमार जैसे सज्जन पुरुष का नाश कैसे किया जा सकता है? पर-स्त्री का तो विचार भी चित्त में न
आने देना चाहिये, इसलिये इन विचारों को सदा के लिये हृदय से निकाल दीजिये। कुमार थे तो आज आप जीवित हैं। कुमार न होते तो आज आपकी न जाने क्या अवस्था हुई
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org