________________
७६
नवाँ परिच्छेद विनाश-काले विपरीत बुद्धि इस कहावत के अनुसार धवल सेठ को यह बातें पसन्द आ गयीं। उसकी मति पलट गयी। वह नाना प्रकार से कुमार के साथ घनिष्टता बढ़ाने की चेष्टा करने लगा। कुमार से मीठी-मीठी बातें करना, अधिक समय तक उनके पास बैठे रहना और उनकी खुशामद करते रहना ही अब धवल सेठ का नित्य-कर्तव्य हो पड़ा।
एक दिन धवल सेठ ने मौका देख, जहाज के बाहर लटकते हुए एक मचान पर चढ़कर आश्चर्य-पूर्वक कहाः"कुमार ! देखिये, देखिये। यह कितने आश्चर्य की बात है, कि एक मगर के आठ मुँह हैं! जो कभी कानों नहीं सुनी, वही आज आँखों देख रहा हूँ। देखना हो तो शीघ्र ही आइये, वर्ना फिर कहेंगे कि मुझे क्यों न बतलाया?"
कौतूहलवश कुमार तुरन्त ही वहाँ जा पहुँचे, किन्तु मचान बहुत ही छोटा था। उस पर एक साथ दो आदमी बैठे या खड़े नहीं हो सकते थे; इसलिये धवल सेठ उस पर से उतर पड़ा। मचान खाली पाते ही कुमार उसपर चढ़ गये। इस ओर धवल सेठ और उसका कपटी मित्र दोनों तैयार खड़े थे। ज्योंही कुमार ने मचान पर पैर रक्खा, त्योंही उन दोनों ने दोनों ओर से मचान की रस्सियाँ काट दीं। कुमार श्रीपाल उसी समय अथाह सागर में जा पड़े!
समुद्र में गिरते ही कुमार ने नवपद का ध्यान किया। उत्तम पुरुष आपत्ति-काल में अपने इष्ट देवको ही स्मरण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org