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आठवाँ परिच्छेद
मन्दिर के द्वार खुल गये श्रीपाल ने रत्नसानु की ओर प्रस्थान करते समय धवल से भी अपने साथ चलने का अनुरोध किया। उसने कहा :-"आप जाइये, आपको न कोई काम है, न कोई चिन्ता। आप जिस कार्य को सोचते हैं, वह अनायास ही सिद्ध हो जाता है। हमें तो खाने की भी फुरसत नहीं मिलती। बड़ी कठिनाई से दिन में एक बार खाने का अवकाश मिलता है। ऐसी अवस्था में आपके साथ कैसे चल सकता हूँ।"
__ श्रीपाल, धवल सेठ के कुटिल स्वाभाव से, भलीभाँति परिचित थे। इसलिये उन्होंने उससे अधिक अनुरोध करना उचित न समझा। अपने कुछ आदमियों को साथ ले, तुरन्त जिनदास के साथ चल दिये। कुछ ही समय में सब लोग ऋषभदेव भगवान के मन्दिर के पास जा पहुँचे। वहाँ पहले से ही लोगों की बड़ी भीड़ थी। जिनदास ने सोचा यदि यह सब लोग एक साथ ही मन्दिर में प्रवेश करेंगे तो पता न लगेगा, कि किसकी दृष्टि पड़ने से मन्दिर के किवाड़ खुले। इसलिये उसने एक-एक मनुष्य को मन्दिर के अन्तर्द्वार तक जाने की आज्ञा दी। इस व्यवस्था के अनुसार वहाँ जितने मनुष्य उपस्थित थे, सभी मन्दिर के उस भीतरी दरवाजे तक हो
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