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श्रीपाल-चरित्र कोई चवर ढाल रहा था। आगे-आगे एक कोढ़ी छड़ीदार की भाति बिरदावली पुकारता जा रहा था। सबके बीच में उम्बर राना एक टट्ट पर बैठे हुए थे। वे ऐसे प्रतीत होते थे, मानों जले हुए बबुलों के बीच में एक आम्र-वृक्ष खड़ा हो। कोढ़ियों का दृश्य तो बहुत ही विचित्र था। गलित कुष्ट के कारण किसी के हाथ गल गये थे, कोई पंग हो गया था, किसी की नाक गायब हो गई थी, तो किसी के कानों का ही पता न था। किसी के मुँह पर मक्खियाँ भिन-भिना रही थीं, किसी के मुँह से लार टपक रही थी
और किसी के शरीर पर चकते ही चकते नजर आते थे। रास्ते में वे चलते समय बार-बार हर्ष-नाद करते थे। लोगों ने जब उनका परिचय पूछा तब उन्होंने बतलाया, कि राज-कन्या से उम्बर राणा का ब्याह होने वाला हैं
और हम लोग उनकी बरात लिये जा रहे हैं। कोढ़ियों की यह बात सुनकर लोगों को बड़ा ही आश्चर्य हुआ। कौतूहल वश वे भी उनके साथ हो लिये। कुछ ही समय में कोढ़ियों और तमाशबीनों का यह दल राज सभा में जा पहुंचा।
उम्बर को देखते ही राजा ने मैना सुन्दरी से कहा-देख, मैना ! तेरे कर्म ने ही जोर मारा है। यह तेरा भावी पति है। इसी को तुझे अपना जीवन-संगी बनाना होगा।
राजा की यह बात सुन मैनासुन्दरी को जरा भी खेद न हुआ। : सका मुख-मण्डल ज्यों-का-त्यों प्रदीप्त और प्रसन्न
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