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तीसरा परिच्छेद
भगंदरादि महा व्याधियों से छुटकारा मिलता है। इससे निर्धनोंको धन की और निःसन्तानों को सन्तान की प्राप्ति होती है।
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इस प्रकार आराधना-विधि और महिमा बतलाकर गुरुदेवने यह महायन्त्र लिखकर मैनासुन्दरी को प्रदान किया। उस समय वहाँ जो श्रावक - गण उपस्थित थे, उन्हें उपदेश देते हुए गुरु ने कहा - "यह दोनों स्त्री-पुरुष बहुत ही गुण-निधान हैं। इनकी यथाशक्ति तुम लोग सेवा करना । इस संसार में साधर्मिक भाई से बढ़कर और कोई नाता नहीं हो सकता। यही वास्तविक नाता है। स्वधर्मावलम्बी बन्धु को सहायता करने से समकित भी निर्मल हो जाता है । "
गुरुदेव का यह उपदेश, सुन श्रावकों के हृदय में श्रीपाल और मैनासुन्दरी के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हुई । वे उन्हें अपने घर गये और वहाँ सिद्धचक्र की आराधना के लिये सब प्रकार की सुविधायें कर दी। मैनासुन्दरी और श्रीपाल इसके लिये उन्हें धन्यवाद दे, आराधना कार्य में लीन हुए ।
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