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चौथा परिच्छेद
के कारण उसकी आँखों में आँसू भर आये और वह वहीं बैठकर रोने लगी।
चैत्यवन्दन पूर्ण होने पर मैनासुन्दरी का ध्यान अपनी माता की ओर आकर्षित हुआ। वह तुरन्त ही उसके पास दौड़ गयी। परन्तु रूपसुन्दरी ने तो उसे स्पर्श करना एवं उससे बोलना भी पाप समझा। मैनासुन्दरी तुरन्त इसका कारण समझ गयी। उसने माता के पैर छूकर कहा :- माता! आप हर्ष के बदले शोक क्यों कर रही हैं? जिनेश्वर भगवान की असीम कृपा से मेरे पति-देव रोग-मुक्त हो गये हैं; किन्तु हम लोगों को जिन-मन्दिर में सांसारिक बातें न करनी चाहिये। इससे आशातना लगती है। आप दर्शन कर, बाहर आइये
और हमलोगों के साथ हमारे घर चलिये। वहाँ पर मैं आपसे यह सब बातें विस्तार पूर्वक कहँगी।
रूपसुन्दरी को इन बातों से कुछ सन्तोष हुआ। वह मैनासुन्दरी के साथ उसके घर गयी। वहाँ श्रीपाल और कमलप्रभा के सम्मुख उसने अपनी माता से सब हाल कह सुनाया। सच्ची बातें मालूम होने पर रूपसुन्दरी को बहुत ही आनन्द हुआ। वह बारंबार अपने और अपनी पुत्री के भाग्य को सराहने लगी।
अन्त में कमलप्रभा ने रूपसुन्दरी से कहा :- “आपके कुल को धन्य है। आपकी कुलीन पुत्री ने हमारे कुल का उद्धार किया है। हम लोग इसके बहुत ही ऋणी हैं। इसके
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