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छठा परिच्छेद
घटना से बाजार में चारों ओर हा-हाकार मच गया। एक ओर हजारों सैनिक थे और दूसरी ओर अकेले श्रीपाल थे। श्रीपाल पर शस्त्रास्त्रों द्वारा अनेक वार किये जाते थे, किन्तु “शस्त्रघात - निवारिणी" औषधिके प्रताप से उनका एक बाल भी बाँका न हो सका। इसके विपरीत, श्रीपाल का एकवार भी खाली न जाता था। वे जिधर ही झपट पड़ते, उधर ही लाशें बिछ जाती और मैदान साफ नजर आता । कुछ समय तक यही अवस्था रहने पर धवल और राजा के सैन्य में भगदड़ होना आरम्भ हो गयी। जिसे जहाँ रास्ता मिला, वह वहीं भाग चला । अनेक सैनिकों ने दीनता प्रदर्शित की एवं अनेक सैनिकों ने शरण स्वीकार कर प्राण रक्षा की।
धवल सेठ ने जब देखा कि मामला बिगड़ रहा है। बल से काम निकालना असम्भव है, तब उसने युक्ति से काम निकालना स्थिर किया । वह तुरन्त ही श्रीपाल के पास जाकर उनके चरणों में गिर पड़ा। कहने लगा :- " आप मनुष्य नहीं, कोई देवता मालूम होते हैं। हम लोगों ने अज्ञानतावश आपको कष्ट देकर जो अपराध किया है, वह क्षमा कीजिये। हम लोग इस समय बहुत बड़े संकट में पड़ गये हैं। हमारी नौकायें स्तम्भित हो गयी हैं। यदि आप किसी तरह उन्हें चला देने की कृपा करेंगे तो हमलोग आपके चिर ऋणी रहेंगे ।”
श्रीपाल ने कहा :- "मैं आपका यह कार्य कर सकता किन्तु इसके लिये आप क्या खर्च करने को तैयार है ।"
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