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चौथा परिच्छेद भाग्य में जितना दुःख भोगना लिखा था, उतना दुःख मैंने भोग लिया। जब सुख के दिन आये तब पुनः सुख की प्राप्ति हुई। इसके लिये आप जरा भी खेद न करें।"
इसके बाद राजा प्रजापाल रानी रूपसुन्दरी से मिला। वह रुष्ट हो गयी थी, इसलिये राजा ने उसके निकट अपना पश्चात्ताप प्रकट कर उसे मना लिया। इसके बाद वह शीघ्र ही बड़ी धूम-धाम से श्रीपाल और मैनासुन्दरी को अपने महल में ले गया। वहाँ वे सब लोग आनन्द पूर्वक रहने लगे। इस घटना से समूचे शहर में जैन धर्म का जय-जयकार होने लगा। मैना सुन्दरी की भी चारों ओर भूरि-भूरि प्रशंसा होने लगी।
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