________________
श्रीपाल - चरित्र
३५
रही थीं। इसी समय मैनासुन्दरी की माता रूपसुन्दरी भी वहाँ दर्शन करने आ पहुँची ।
पाठक ! शायद अभी रूपसुन्दरी को भूले न होंगे। जिस समय प्रजापालने क्रुद्ध हो कोढ़ी के साथ मैनासुन्दरी का ब्याह कर दिया, उस समय से उसे कुछ विरक्ति सी उत्पन्न हो गयी। वह अपने मायके चली आयी और पुत्री के दुःख से दुखी रहने लगी। आज जिन वाणी का स्मरण होनें पर वह अपने समस्त दुःखों को भूल कर दर्शन करने आयी थी । दर्शन कर जिनमन्दिर से लौटते समय मैनासुन्दरी पर उसकी दृष्टि पड़ी। वह तुरन्त उसे पहचान गयी; किन्तु उसके समीप किसी पर-पुरुष को देख, वह मन में न जाने क्या- क्या सोचने लगी ।
इस
उसने अपने दामाद को कभी देखा न था । केवल इतना ही सुना था, कि किसी कोढ़ी के साथ मैनासुन्दरी का विवाह कर दिया गया है। इसीलिये, मैनासुन्दरी के साथ इस समय किसी सुन्दर पुरुष को देख, वह चौक पड़ी। वह सोचने लगी कि – “ अवश्य, मैना ने उस कोढ़ी पति का त्याग कर, सुन्दर पुरुष को अपना तन-मन अर्पण कर दिया है।" उस विचार से उसे बहुत ही खेद हुआ। वह अपने मन में कहने लगी :- "हे ईश्वर ! तूने इस कुल-कलंकिनी पुत्री की माता मुझे क्यों बनाया? यह उत्पन्न होते ही क्यों न मर गयी कि, आज मुझे इस तरह परिताप तो न करना पड़ता।” इस दुःख
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org