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तीसरा परिच्छेद
गुरुने कहा - "हे बाला! संसार में सभी तरह के मनुष्य हैं। तुझे इसके लिये चिन्ता न करनी चाहिये। धर्म के प्रभाव से चिन्तामणि रूप यह पुरुष तेरे हाथ लगा है। यह बहुत ही भाग्यशाली है । यथासमय यह राजाओं का राजा होगा और सब लोग इसके चरणों में आकर प्रणाम करेंगे।"
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मैनासुन्दरी ने गुरुदेव से प्रार्थना की- “महाराज ! मुझे आपकी बातों पर पूर्ण विश्वास है। जो आपने बतलाया है, वह अवश्य ही किसी दिन सत्य प्रमाणित होगा । किन्तु इस समय शास्त्रों को देखकर कोई ऐसा उपाय बतलाइये जिससे आपका यह श्रावक व्याधिमुक्त हो सके । ”
गुरु ने कहा – “जड़ी बूटी, मंत्र, तन्त्र, यन्त्र विद्या और औषधि यह किसी को बताना उत्तम मुनि का आचार नहीं । तथापि यह पुरुष परम धर्म-निष्ठ होगा, इसलिये मैं तुम्हें एक यंत्र बतलाता हूँ। यह यन्त्र बहुत ही चमत्कारिक है।”
इतना कह, गुरू महाराज ने शास्त्र और धर्म-ग्रन्थों का मन्थन कर सिद्धचक्र नामक एक यन्त्र खोज निकाला। उस यन्त्र में 'ओं ह्रीं सहित अरिहन्तादि नवपद और गुरु द्वारा ज्ञान करने योग्य और भी कई मन्त्राक्षर थे। उस यन्त्र के मध्य भाग में अरिहन्त और चारों दिशाओं में सिद्ध, आचार्य उपाध्याय और साधु-पद की स्थापना की गयी थी। चारों विदिशाओं में दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप इन चार पदों की स्थापना की थी । गुरुदेव ने बतलाया, कि इसे 'अष्ट-दल
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