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तीसरा परिच्छेद प्रभात होते ही उसने बड़े प्रेम से उम्बर राणा को जगाया। नित्य-कर्म से निवृत्त होने के बाद मैनासुन्दरी ने अनुरोध किया कि चलो, हम लोग देव-दर्शन करने चलें। उम्बर ने बिना किसी आपत्ति के उसका अनुरोध स्वीकार कर लिया। दोनों ने बड़े प्रेम से जिन-मन्दिर की ओर प्रस्थान किया।
श्री ऋषभदेव भगवान के दर्शन कर उम्बर राणा अर्थात् श्रीपाल-कुमार रंग-मण्डप में बैठकर स्तुति करने लगे। मैनासुन्दरी ने भी निर्मल जल से स्नान कर परमात्मा की पूजा की। चन्दन कर्पूरादि चढ़ाया। गले में पुष्प-माला पहनाकर हाथ में फूलों का गुच्छा अर्पित किया। द्रव्यपूजा करने के बाद उसने भाव-पूजा की और चैत्यवन्दन कर परमात्मा की स्तुति करने लगे। वह कहने लगी-“हे परमात्मा! आप जगत में चिन्तामणि रत्न के समान हैं। जन्म जन्मान्तर हमें केवल आप ही का सहारा है। आपही के अनुग्रह से प्राणियों का दुःख-दुर्भाग्य दूर हो जाता है।"
इस प्रकार स्तुति कर मैनासुन्दरी ने कायोत्सर्ग किया। उसी समय प्रभु के गले की पुष्प-माला और हाथ का श्रीफल अपने आप श्रीपाल की ओर आता हुआ दिखायी दिया। श्रीपाल ने तुरन्त खड़े होकर वे दोनों ले लिये। मैनासुन्दरी ने कायोत्सर्ग पूर्ण किया। पति के हाथ में पुष्प-माला और श्रीफल (बिजोरा) देखकर मैनासुन्दरी
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