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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ तद्भावापत्तेरिति क्रम-योगपद्याऽयोगादक्षणिकानामर्थ( ?) क्रियासामर्थ्यविरहलक्षणमसत्त्वमायातमिति सत्त्वलक्षण: स्वभावहेतुः क्षणिकतायां बाधकप्रमाणबलाद् निश्चिततादात्म्यो विशेषलक्षणभाक् कथं न प्रतीत: ?।
अथाऽक्षणिकानामिव क्षणक्षयिणामप्यर्थक्रियासामर्थ्यलक्षणं सत्त्वमनुपपन्नमेव, क्रमाऽयोगस्य तत्रापि तदवस्थत्वात्। अतो न क्षणिका अपि परैरनाधीयमानस्वरूपभेदाः सामर्थ्यक्रियाप्रक्रान्तप्रकारमुत्पादयितुं 5 शक्ताः। न च प्रतिक्षणोदयं बिभ्राणा: परस्परतो विशेषमासादयन्ति भावभेदप्रसङ्गात् । तथाहि- असौ
विशेषस्तेषां प्रागुत्पत्तेः पश्चाद्वा ? न तावत् प्राक्, तेषामेव तदाऽसत्त्वात् । पश्चात्तत्स्वरूपस्याऽकार्यत्वात् तदुपहितानुपहितक्षणानामविवेकादिति न सहकारिभिरुपकारः। ततो निर्विशेषाणां न क्रम-योगपद्याभ्यामर्थक्रियासामर्थ्यलक्षणं सत्त्वम्। तदुक्तं च-( )
है। पूर्व क्षण में यदि सकल कारणों का संमिलन सज्ज है तो उत्तर क्षण में कार्य का उदय न हो ऐसा 10 मानना अयुक्त है। फिर भी ऐसा मानेंगे तो प्रथम क्षण में भी कार्य का उदय न मानने की विपदा गले पडेगी।
इस चर्चा का फलितार्थ यह है कि अक्षणिक भावों में क्रम/यौगपद्य की संगति अशक्य होने से अर्थक्रियासामर्थ्याभावरूप असत्त्व ही स्वीकारना पडेगा। तब सत्त्वरूप स्वभावहेतु का क्षणिकता के साथ ही
मेल बैठने में कोई बाधक प्रमाण न बच पाने से क्षणिकता के साथ उस का तादात्म्य निश्चित हो जाता 15 है। आपने पहले जो कहा था (५-१२) 'स्वभाव हेतु (सत्त्व) में विशेषलक्षण का निश्चय नहीं हो सकता' - वह मिथ्या हो गया क्योंकि विशेषलक्षणरूप तादात्म्य अब सुनिश्चित हो गया है।
[क्षणिकभाव में अर्थक्रियाकारित्व अशक्य - शंका ] शंका :- आपने अक्षणिक में जो दोष बताया वह क्षणिक भावों में भी प्रविष्ट है, अर्थक्रियासामर्थ्यात्मकसत्त्व की यहाँ भी संगति नहीं बैठती। कारण, क्रमशः कार्यकारित्व का योग क्षणिक वस्तु में संगत नहीं है। 20 क्षणिक भावों में अन्य सहकारी आदि द्वारा स्वरूपविशेष का आधान तो शक्य ही नहीं, अतः क्रियासामर्थ्य
का जो प्रस्तुत प्रकार है (यानी क्रमशः अर्थक्रिया) उस का जनन कर नहीं सकता। क्षणिक भाव एवं कितने भी अन्य सहकारी, आखिर तो सब प्रत्येक क्षण में नये नये ही उदित होते हैं, वे कैसे एक-दूसरे को सहयोगरूप विशेष प्रदान करेंगे ? यदि करेंगे तो एक माने गये भाव में भी भेद प्रसक्त होगा। कैसे यह
देखिये – यह जो विशेषाधान है वह भावोत्पत्ति के पहले होगा या बाद में ? पहले तो भाव स्वयं ही 25 सत न होने से विशेषाधान किस में होगा ? भावोत्पत्ति हो गयी, उस के बाद में तो उस भाव का स्वरूप
(जो उत्पन्न हो ही चुका है वह) अन्य किसी का कार्यात्मक विशेष बन नहीं सकता। कारण, विशेषाधानयुक्त
और विशेषाधानमुक्त वह मूल भाव तो विभिन्न नहीं है। अतः सहकारीयों के द्वारा क्षणिक भाव में कोई विशेषाधानरूप उपकार शक्य ही नहीं है। इस प्रकार क्षणिकभाव विशेषाधानविशिष्ट न होने से क्रम/यौगपद्य से अर्थक्रियाकारित्व रूप सत्त्व उस में घट नहीं सकता। कहा भी है – [हेतुबिन्दुटीका - पृ.१३१]
[क्षणिक भाव में सत्त्व हेतु अनैकान्तिक ] (अक्षणिक में क्रम/योगपद्य, अर्थक्रियाकारित्व, सत्त्व मेल नहीं खाता...) इत्यादि बोलनेवाला कौन शोभायुक्त बनेगा यदि वह निर्लज्ज नहीं अथवा अज्ञानी नहीं। (वैसे बोलनेवाला कोई नहीं शोभता) क्योंकि
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