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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ किं येन रूपेण मनस्कारो ज्ञानस्य जनकः तेनैव चक्षुरादिकमपि जनयति, आहोस्वित् रूपान्तरेण ? यदि तेनैवेति पक्षः तदा चक्षुरादेानत्वापत्तिः।।
. तथाहि- सकलस्वगतविशेषाधायकत्वं कार्ये उपादानत्वम् तद्रूपेण चेत् प्रवृत्तो मनस्कारश्चक्षुरादि
जनने कथं न चक्षुरादेर्ज्ञानरूपतापत्तिः ? अथ स्वभावान्तरेण चक्षुरादिजननेऽसौ प्रवर्त्तते । नन्वेवं स्वभावभेदाद् 5 मनस्कारस्य भेदापत्तिः स्वभावभेदलक्षणत्वाद् वस्तुभेदस्य। अथ स्वसंविदि एकत्वेनाऽवभासात् मनस्का
रक्षणस्यैकत्वमुपादान-सहकारिशक्तिभेदेऽपि। नन्वेवमक्षणिकस्यापि तदतत्कालभाविकार्यजनकत्वाऽजनकत्वभावभेदेऽप्येकत्वेनाध्यक्ष प्रतिभासनात् कथं नैकत्वम् ? अथ न स्वभावभेदाद् भावभेदः अपि तु विरुद्धस्वभावभेदात् तदतत्कार्यजनकत्वाऽजनकत्वे चाऽक्षणिकस्य विरुद्धौ स्वभावाविति तस्य भेदः । नन्वेवं मनस्कारक्षण
स्यापि भेदप्रसक्ति: उपादानत्व-सहकारित्वलक्षणयोः शक्त्योर्मनस्कारात् परस्परतश्च भेदात् । अथ न शक्तीनां 10 शक्ति-शक्तिमतोर्वा भेदः, तथापि विरुद्धस्वभावद्वययोगात भेद एव। यतो मनस्कारस्योपादेयज्ञानं प्रति यैव जनिका शक्तिः सैव चक्षुरादिकं प्रति, ततश्चक्षुरादिकं प्रति जनकस्वभावोऽजनकस्वभावश्च मनस्कारः
उत्तर :- यहाँ प्रश्न यह है कि मन जिस स्वभाव से ज्ञान का जनक है क्या उसी स्वभाव से चक्षुआदि को जन्म देता है या अन्य स्वभाव से ? यदि उसी स्वभाव से, तब तो चक्षु आदि
में भी ज्ञानरूपता की आपत्ति होगी। 15
[चक्षु आदि में ज्ञानरूपता की, मनस्कार में भेद की आपत्ति ] देखिये - उपादानत्व यदि कार्य में सकल स्वनिष्ठ विशेषों का आधान-कारित्वरूप। और उसी रूप से मनस्कार चक्षुरादि उत्पन्न करेगा तो चक्षु आदि में ज्ञानरूपता की आपत्ति क्यों नहीं होगी ? यदि उस रूप से नहीं अन्य रूप (= स्वभाव) से नेत्रादि के सृजन के लिये मनस्कार प्रवृत्त होगा
तब तो मनस्कार में भेदापत्ति होगी क्योंकि वस्तुभेद स्वभावभेदस्वरूप ही होता है। 20 शंका :- उपादानशक्ति - सहकारिशक्ति भिन्न होने पर भी स्वसंवेदन में मनस्कार एकत्वरूप से
ही भासित होता है इस लिये उस का एकत्व अक्षुण्ण रहेगा। उत्तर :- अच्छा ! इसी तरह तत्कालभाविकार्यजनकत्व - अतत्कालभाविकार्यअजनकत्व स्वरूप भेद के होते हए भी अक्षणि एकरूप से प्रत्यक्ष में भासित होने से, नीलादि का एकत्व क्यों नहीं होगा ? शंका :- सिर्फ स्वभावभेद
वस्तुभेदप्रयोजक नहीं होता, विरुद्धस्वभाव का भेद वस्तुभेदप्रयोजक होता है। तत्कार्यकारित्व और 25 अतत्कार्यकारित्व ये दो एक अक्षणिक नीलादि पदार्थ में विरुद्ध स्वभाव है, अतः उस एक नीलादि
में भेद प्रसक्त होगा। उत्तर :- अरे ! ऐसे तो मनस्कारक्षण में भी भेद प्रसक्त होगा क्योंकि उपादानत्व शक्ति और सहकारित्व शक्ति मनस्कार से तो भिन्न है एवं परस्पर भी विरुद्ध होने से भिन्न है। शंका :शक्ति और शक्तिमान का भेद नहीं होता, एवं शक्तियों में परस्पर भेद नहीं होता। उत्तर :- तथापि विरुद्ध दो स्वभाव के संभवित योग से भेद प्रसक्त होगा ही। कारण :- मनस्कार में उपादेय ज्ञान 30 के प्रति जो जनक शक्ति है वही चक्षु आदि के प्रति है, फलतः चक्षुआदि के प्रति मनस्कार में जनकस्वभाव
अजनकस्वभाव ऐसे दो विरुद्ध स्वभाव प्रसक्त होगा, यहाँ चक्षु आदि के प्रति जो सहकारिस्वभाव है वह सकल स्वनिष्ठ विशेषों का आधानकारी न होने से अतत्स्वभाव (अनुपादानत्व) रूप बन गया ।
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