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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ शरीरविभागकृतश्च हिंसकत्वमनुपपन्नं भवेत्, शरीरपुष्ट्यादेः रागाद्युपचयहेतुत्वम् शरीरस्य ‘कृशोऽहम् स्थूलोऽहम्' इति प्रत्ययविषयत्वं च दूरोत्सारितं भवेत्। पुरुषान्तरशरीरस्येव घटाकाशयोरपि प्रदेशान्योन्याप्रवेशलक्षणो बन्धोऽस्त्येवेत्ययुक्तो घटाकाशयोरपि प्रदेशान्योन्याप्रवेशलक्षणो बन्धोऽस्त्येवेत्ययुक्तो दृष्टान्तः अन्यथा घटस्यावस्थितिरेव न भवेत्।
न चान्योन्यानुप्रवेशसद्भावेप्याकाशवत् शरीरपरतन्त्रता आत्मनोऽनुपपन्ना, मिथ्यात्वादे: पारतन्त्र्यनिमित्तस्यात्मनि भावात् आकाशे च तदभावात्। न च शरीरायत्तत्वे सति तस्य मिथ्यात्वादिबन्धहेतुभिर्योगः तस्माच्च तत्प्रतिबद्धत्वम् इतीतरेतराश्रयत्वम् अनादित्वाभ्युपगमेनास्य निरस्तत्वात्। न च शरीरसम्बन्धात् प्रागात्मनोऽमूर्त्तत्वम् सदा तैजस-कार्मणशरीरसम्बन्धित्वात् संसारावस्थायां तस्य अन्यथा
में योग्यता की कारणता कही जायेगी। आत्मा में इन्द्रियप्रत्यक्षयोग्यता नहीं है।) पहले (पृ.३६७-५) 10 कहा था कि – 'आत्मा शरीरप्रतिबद्ध नहीं होता क्योंकि अमूर्त होता है, घट-आकाश का प्रतिबद्धत्व
नहीं होता' – इस प्रयोग में अमूर्त्तत्व हेतु असिद्ध है आत्मा कथंचित् मूर्त्त और अमूर्त है। यदि आत्मपरिणतिस्वरूप मन और शरीर का अत्यन्त भेद मानेंगे तो मन के विकार या अविकार से शरीर में विकार-अविकार दिखता है वह नहीं हो सकेगा। तथा शरीर के उपकार-अपकार से आत्मा को
सुख या दुःख का अनुभव भी नहीं हो सकेगा। तथा शरीर के उपकार-अपकार से आत्मा को सुख 15 या दुःख का अनुभव भी नहीं हो सकेगा। तथा शरीर विघातकारी को आत्महिंसकत्व का आरोप
नहीं लगेगा। तथा शरीर की पुष्टि/अपुष्टि से आत्मा में रागादि का उपचय-अपचय नहीं होगा। तथा अहंपदार्थ आत्मा के साथ अभेदभाव से शरीर में 'मैं कृश हूँ-मैं स्थूल हूँ' इस अनुभव कि विषयता दूर भाग जायेगी। जैसे अन्यपुरुष का अपने शरीर के प्रदेशों के साथ बन्धात्मक अन्योन्यानप्रवेश
होता है वैसे घट और आकाश का भी अन्योन्यप्रवेशरूप बन्ध होता ही है अतः आत्मा में शरीरअप्रतिबद्धत्व 20 को दर्शाने के लिये घट-आकाश का दृष्टान्त दिया है वह अयुक्त ही है। यदि घट-आकाश का उक्तलक्षण बन्ध नहीं मानेंगे तो घट को कहीं भी अवस्थिति या स्थिरता प्राप्त नहीं होगी।
[ संसारी आत्मा में देहपरतन्त्रता की उपपत्ति ] शंका :- घट-आकाशवत् देह-आत्मा का अन्योन्यानुप्रवेश मान लेने पर भी जैसे आकाश को घटपरतन्त्रता नहीं होती तथैव आत्मा को देहपरतन्त्रता संगत नहीं होगी। 25 उत्तर :- ऐसा नहीं है, आकाश में कोई पारतन्त्र्य का निमित्त नहीं है किन्तु आत्मा में मिथ्यात्वादि पारतन्त्र्यनिमित्त मौजुद है अतः आत्मा में पारतन्त्र्य सयुक्तिक है।
शंका :- आत्मा शरीरपरतन्त्र होने से आत्मा में मिथ्यात्वादिबन्धहेतु का संयोग सिद्ध होगा, किन्तु दूसरी और मिथ्यात्वादिबन्धहेतु से शरीरपारतन्त्र्य सिद्ध होगा - अन्योन्याश्रय दोष स्पष्ट है।
उत्तर :- नहीं, यह अन्योन्यहेतुता प्रवाहतः अनादिकालीन स्वीकृत होने से अन्योन्याश्रय निरस्त 30 हो जाता है। ऐसा नहीं है कि - ‘इस शरीर के साथ सम्बन्ध होने के पहले अशरीरी होने से
आत्मा अमूर्त्त था' - आत्मा को अपनी संसार दशा में हमेशा तैजस-कार्मणशरीर का योग चालु ही है। इस को नहीं मानेंगे तो तैजसादि शरीर के विना भवान्तर में आत्मा को स्थूल शरीर का सम्बन्ध
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