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खण्ड-३, गाथा-५०
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एतदेवाह(मूलम्-) ण य बाहिरओ भावो अब्भंतरओ य अत्थि समयम्मि।
णोइंदियं पुण पडुच्च होइ अब्भंतरविसेसो।।५०।। आत्म-पुद्गलयोरन्योन्यानुप्रवेशाद् उक्तप्रकारेण अर्हत्प्रणीतशासने न बाह्यो भावः अभ्यन्तरो वा सम्भवति, मूर्ताऽमूर्तरूपादितयाऽनेकान्तात्मकत्वात् संसारोदरवर्तिनः सकलवस्तुनः । 'अभ्यन्तरः' इति 5 व्यपदेशस्तु नोइन्द्रियं = मनः प्रतीत्य, तस्यात्मपरिणतिरूपस्य पराऽप्रत्यक्षत्वात् शरीर-वाचोरिव।
न च शरीरात्मावयवयोः परस्परानुप्रवेशात् शरीरादभेदे आत्मनोपि तद्वत् परप्रत्यक्षताप्रसक्तिः; इन्द्रियज्ञानस्याशेषपदार्थस्वरूपग्राहकत्वायोगात् इत्यस्य प्रतिपादयिष्यमाणत्वात्। अत: 'शरीरप्रतिबद्धत्वमात्मनो न भवति अमूर्त्तत्वात्' अत्र प्रयोगे हेतुरसिद्धः । यदि चात्मपरिणतिरूपमनसः शरीरादात्यन्तिको भेद: स्यात् तद्विकाराऽविकाराभ्यां शरीरस्य तत्त्वं न स्यात्, तदुपकारापकाराभ्यां वात्मनः सुख-दुःखानुभवश्च न भवेत्, 10 किन्तु दूसरे भी ऐसे निमित्त हैं जिन के आधार से दूसरे ढंग से बाह्य और अभ्यन्तर ऐसा विभाग जिन्दा रहेगा ।।४९ ।।
[जैन दर्शन में न कुछ बाह्य न अभ्यन्तर ] अवतरणिका :- पूर्वोक्त बाह्य-अभ्यन्तर की स्पष्टता करते हैं -
गाथार्थ :- सिद्धान्त में न कुछ बाह्य है न कोई अभ्यन्तर भाव है। फिर भी नोइन्द्रिय (= मन) 15 को लेकर 'अभ्यन्तर' विशेष होता है।।५०।।
व्याख्यार्थ :- अरिहंत प्रभु के प्रकाशित शासन में आत्मा और पुद्गल (= जड) का अन्योन्य अनुप्रवेश पूर्वोक्तप्रकार से प्रसिद्ध है अत एव न कोई बाह्य भाव संभव है न तो अभ्यन्तर । कारण :- संसारान्तर्गत सकल चीज-वस्तु मूर्त्त-अमूर्त इत्यादिरूप होने से अनेकान्तमय होती है।
प्रश्न :- लोक में 'अभ्यन्तर' (और बाह्य) ऐसा विशेष यानी व्यवहार कैसे होता है ? कौन 20 सा निमित्त है ?
उत्तर :- मन को जैनदर्शन में नोइन्द्रिय कहा गया है, वह मन क्या है - आत्मा की परिणति है। ऐसा मन अन्य लोगों को प्रत्यक्ष नहीं होता, शरीर और वचन तो अन्य लोगों को प्रत्यक्ष होता है। मतलब इस मन के आधार पर बाह्य-अभ्यन्तर भेद व्यवहृत होता है। [देहाभिन्न आत्मा की परप्रत्यक्षतापत्तिनिरसन ]
25 शंका :- यदि शरीर और आत्मा के प्रदेशों अन्योन्य संमिश्र है तो देह से अभिन्न आत्मा का भी देहवत् अन्य लोगों को प्रत्यक्ष क्यों नहीं होगा ?
उत्तर :- नहीं, प्रत्यक्ष इन्द्रियज्ञान में इतनी अमर्यादित शक्ति नहीं होती की वह सकल पदार्थों का साक्षात्कारी हो सके। इस तथ्य का निरूपण अग्रिम खंड में किया जानेवाला है। (इन्द्रियप्रत्यक्ष
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