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खण्ड-३, गाथा-२७
२९३ स्वभवनप्रतिषेधपर्यवसानत्वाद् न पर्युदासाभावात्मको भावो भवेत्। न चासौ तथा तद्ग्राहकप्रमाणाभागात् तथाभूतभावग्राहकप्रमाणाभ्युपगमे च प्रसज्य-पर्युदासात्मको भावो भवेदित्यनेकान्तप्रसिद्धिः। द्वितीयपक्षेऽपि न पर्युदासः अनिषिद्धतत्स्वरूपत्वात् पूर्वभावस्वरूपवत्।
प्रसज्यरूपाभावात्मकत्वेऽपि भावस्य प्रतिषिध्यमानस्याश्रयो वक्तव्यः । न तावत् मृत्पिण्डलक्षणं कारणमाश्रयः, कारणनिवृत्तेहि प्राग् घटस्याऽसत्त्वेन 'अयम्' इति प्रत्ययाऽविषयत्वात्। 'अयं' प्रत्ययविषयत्वे 5 च ‘अयं ब्राह्मणो न भवति' 'ब्राह्मणादन्योऽयम्' इति च प्रतिषेधप्रधानविध्युपसर्जन-विधिप्रधानप्रतिषेधोपसर्जनयोः शब्दयोः प्रवृत्तिनिमित्तधर्मद्वयाधारभूतं द्रव्यं विषयत्वेनाऽभ्युपगन्तव्यमन्यथा तदयोगात्। तथा चानेकान्तवादापत्तिरयत्नसिद्धा- इति तथाभूतस्य तस्य वस्तुनः प्रमाणबलायातस्य निषेद्धुमशक्यत्वात् । एकान्तेन घटस्योत्पत्तेः प्रागस्तित्वे क्रियायाः प्रवृत्त्यभावः फलसद्भावात्तत्सद्भावेऽपि प्रवृत्तावनवस्थाकी तरह स्वभवन का प्रतिषेधमात्र ही बोधित होगा, अतः भाव (प्रसज्यअभावात्मक होगा) पर्युदासाभावात्मक 10 नहीं होगा। भाव स्वरूप का त्याग करके पर्युदासअभावात्मक हो भी नहीं सकता क्योंकि तथाविधभावबोधक प्रमाण अनुपलब्ध है। स्वरूप परित्याग करने पर स्वभवनप्रतिषेध यानी प्रसज्यरूपता तो प्रसक्त है ही, उपरांत यदि पर्युदासाभावात्मकता साधक प्रमाण मिलेगा तो भाव में प्रसज्य-पर्युदास उभयात्मकता प्रविष्ट होने से अनेकान्त मत प्रसिद्ध हो जायेगा। दूसरे उपविकल्प में पूर्वस्वरूप का त्याग न होने से पर्युदासाभावात्मकता निरवकाश रहेगी जैसे पूर्वभावस्वरूप में वह नहीं है (वैसे कारणनिवृत्तिकाल में 15 भी नहीं होगी।)
[ प्रसज्याभावात्मकता - दूसरे मूल विकल्प की आलोचना ] दूसरे मूल विकल्प में :- कारणनिवृत्तिचर्चा में भाव अभावरूप है फिर कहा था कि भाव प्रसज्याभावात्मक है ? यदि हाँ तो यहाँ प्रसज्यरूपाभाव से जिस भाव का निषेध किया जाता है उस का आश्रय बताईए ! मिट्टीपिण्डरूप कारण को भाव का आश्रय दिखायेंगे तो हम उस का आगे 20 चल कर निषेध प्रदर्शित करेंगे। अतः जिस का हम निषेध करनेवाले है उस का कोई आश्रय हो नहीं सकता। घटात्मक कार्य भी भाव का आश्रय नहीं बन सकता, क्योंकि घट तो मिट्टीपिण्ड के बाद उत्पन्न होगा, कारण (मिट्टीपिण्ड) की निवृत्ति के पहले तो मिट्टीपिण्डावस्था में घट असत् है अतः भाव के आश्रय के रूप में 'यह' इस तरह की प्रतीति से विषय के रूप में उस का उल्लेख शक्य नहीं है। यदि उस को 'यह' ऐसी प्रतीति का विषय मानेंगे तो, जैसे 'यह ब्राह्मण नहीं है (प्रसज्य 25 प्रतिषेध)' और 'यह ब्राह्मण से जुदा है' (पर्युदास०) इस प्रकार दोनों तरह का व्यवहार होता है उस तरह भाव-घट-मिट्टीपिण्ड के बारे में भी दोनों प्रसज्य-पर्युदासव्यवहार ‘यह घट नहीं है' - यह घट से भिन्न है' मानेंगे तभी 'यह' इस प्रतीति का विषयभत ऐसा (मिट्टी पिण्डादि) द्रव्य स्वीकारना होगा जो निषेध प्रधान और विधि गौण ऐसे शब्द की, एवं विधिप्रधान और निषेध गौण ऐसे शब्द की प्रवृत्ति के निमित्तभूत दो धर्म का आधारभूत हो। अन्यथा उक्त दो प्रकार के व्यवहार का प्रचलन 30 शक्य नहीं होगा। उक्त दो प्रकार के व्यवहार से अनायास ही अनेकान्तवाद की आपत्ति खडी होगी, क्योंकि अनेकान्तात्मक वस्तु जब उक्त प्रकार से प्रमाणबल से प्राप्त होती है तो उस का निषेध शक्य
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