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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ नयविषय: अभिन्ने पुरुषरूपे भेदस्वरूपो निर्दिष्ट: उपचारात्। एवं चाभिन्नं पुरुषवस्तु भेदं प्रतिपद्यते इति यावत् ।।३४ ।।
एवं निर्विकल्प-सविकल्पस्वरूपे प्रतिपाद्ये पुरुषादिवस्तुनि तद्विपर्ययेण तद् वस्तु प्रतिपादयन् वस्तुस्वरूपानवबोधं स्वात्मनि ख्यापयतीति दर्शनार्थमाह(मूलम्-) सवियप्प-णिब्वियप्पं इय पुरिसं जो भणेज्ज अवियप्पं ।
सवियप्पमेव वा णिच्छएण ण स निच्छिओ समए ।।३५।। सविकल्प-निर्विकल्पं स्यात्कारपदलाञ्छितं पुरुषद्रव्यं यः प्रतिपादकः तद् वस्तु ब्रूयात् अविकल्पमेव सविकल्पमेव वा निश्चयेन इत्यवधारणेन स यथावस्थितवस्तुप्रतिपादने प्रस्तुतेऽन्यथाभूतं वस्तुतत्त्वं प्रतिपादयन्
न निश्चित इति निश्चयो = निश्चितम् तदस्यास्तीति निश्चित:- अर्शआदित्वात् अच्, समये परमार्थेन 10 पूर्ववत् विषयी के साथ विषय यानी ऋजुसूत्रादिअर्थनय का विषय कहा गया, यहाँ अभिन्न पुरुषात्मक
वस्तु का भेदप्रदर्शन हुआ है वह भी उपचार से समझना। तात्पर्य, अर्थनय की नजरों में अभिन्न एक पुरुषवस्तु भेदग्रस्त माना गया है।।३४ ।।।
[ सविकल्प-निर्विकल्प उभयरूप से वस्तुप्रतिपादन सत्य ] अवतरणिका :- पुरुषादि वस्तु का सविकल्प (= भेद) अविकल्प (= अभेद) उभयप्रकार से प्रतिपादन 15 किया जाय तो वह सत्य है किन्तु उस से विपरीत एकान्ततः किसी एक प्रकार से जो वक्ता निरूपण
करेगा वह सिर्फ अपने, वस्तुस्वरूप के अज्ञान को खुल्ला करेगा - इस तथ्य को दिखाने के लिये कहते हैं -
गाथार्थ :- सविकल्प-निर्विकल्प पुरुष को जो निश्चयतः अविकल्प या सविकल्प ही कहता है वह सिद्धान्त में निश्चयविकल है।।३५ ।।
व्याख्यार्थ :- ‘स्यात्' (= कथंचित्) इस पद का उच्चार ‘स्यात्कार' है। ऐसे स्यात्कार पद से अलंकृत (= अलंकरणार्ह) सविकल्प-अविकल्प उभयरूप जो पुरुषद्रव्य है उस के निरूपण में जो वक्ता भारपूर्वक निश्चयतः एकान्ततः अविकल्प या सविकल्प ही दिखायेगा वह निश्चितात्मा नहीं है। यहाँ यथार्थवस्तुनिरूपण का प्रस्ताव चल रहा है तब तत्त्व से विपरीत एकान्ततः वस्तुतत्त्व का प्रतिपादन
करनेवाला सुनिश्चित कैसे हो सकता है ? सिद्धान्त के बारे में वह परमार्थतः वस्तुसार का ज्ञाता 25 नहीं है। यहाँ 'निश्चित' पद मूल गाथा में है, निश्चय अर्थवाले उस 'निश्चित' पद को तद्वान् (निश्चयवान्)
अर्थ में फलित करने के लिये पाणिनिव्याकरणानुसार अर्शआदि पदों से 'अच्' प्रत्यय स्वामित्व अर्थ में होता है उस का आधार प्रदर्शित किया गया है - निश्चित (= निश्चय) है जिस के पास वह है निश्चित। यहाँ ‘अच्' प्रत्यय करने पर पद का रूप नहीं बदलता किन्तु 'निश्चयवान्' ऐसा अर्थ निकल आता है। 30 कैसे यह सुनो :- वस्तुतत्त्व का सही निरूपक वही है जो प्रमाणतः निश्चित एवं प्रमाण के
7. 'अर्शआदिभ्यो अच् (५-२-१२७)' पाणिनि० ।
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