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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ वाच्यः। अथाप्यरूपादिरूपा रूपादयः । नन्वेवमपि रूपादय एव न भवन्तीति तेषामभावे केऽसंद्रुतरूपतया विशेष्या येनाऽसंद्रुतरूपा रूपादयो घटो भवेत् इत्येवमप्यवाच्यः। अनेकान्ते तु कथञ्चिदवाच्यः ।१४ ।
__यदि वा रूपादयोऽर्थान्तरभूताः, मतुबर्थो निजः, ताभ्यामादिष्टो घटोऽवक्तव्यः रूपाद्यात्मकैकाकाराव
भासप्रत्ययविषयव्यतिरेकेणापरसम्बन्धानवगतेर्विशेष्याभावात् 'रूपादिमान् घटः' इत्यवाच्यः। न चैकाकार5 प्रतिभासग्राह्यव्यतिरेकेणापर (सम्बन्धानवगतेर्विशेष्याभावात्) रूपादिप्रतिभास इति विशेषणाभावादप्यवाच्यः । अनेकान्ते तु कथञ्चिदवाच्यः ।१५।
अथवा, बाह्योऽर्थान्तरभूतः, उपयोगस्तु निजः ताभ्यामादिष्टोऽवक्तव्यः। तथाहि- य उपयोग: स घट इति यधुच्येत तर्जुपयोगमात्रकमेव घट इति सर्वोपयोगस्य घटत्वप्रसक्तिरिति प्रतिनियतस्वरूपाभावादवाच्यः।
अथ यो घटः स उपयोग इत्युच्येत तथाप्युपयोगस्यार्थत्वप्रसक्तिरित्युपयोगाभावे घटस्याप्यभावः, ततश्च 10 ‘समुदायभावापन्नरूपादि' में विशेष्यभूत हो कर प्रतीत होनेवाले रूपादि का अभाव हो जाने से समुदायभावापन्न रूपाद्यात्मक घट का अभाव यानी असत् हो जाने से घट सर्वथा अवाच्य बन जायेगा।
यदि कहें कि रूपादि अरूपादिस्वरूप हैं (यानी अरूपादिव्यावृत्त नहीं है।) तो यह गलत है, जब वह अरूपादिस्वरूप है वह रूपादिआत्मक कैसे कहे जा सकते हैं ? मतलब रूपादि आत्मक न होने
से 'असंद्रुतरूपत्व' ऐसा विशेषण भी उन्हें जुड़ नहीं सकता, यानी घट असंद्रुतरूप भी नहीं हो सकता, 15 आखिर वह अवाच्य रह गया। अनेकान्तवाद में तो कथंचिद् अवाच्य है - यह समझ के चलना १४ ।
[रूपादि और मतुप अर्थ से भंगत्रय प्राप्ति - १५ ] १५ वा प्रकार :- घट रूपादिमान् है ऐसा कहने पर घट और रूपादि का भेद लक्षित होने से रूपादि घट का पर-रूप है। मतुप् प्रत्ययार्थ ‘सम्बन्धी' यह घट का स्वरूप हैं क्योंकि रूपादिमान्
और घट का अभेद लक्षित होता है। यहाँ इन स्व-पर रूपों से सत्त्व-असत्त्व प्रथम-द्वितीय भंग हुए। 20 दूसरी ओर, इन दोनों रूपों से एक साथ विवक्षा करने पर घट अवाच्य है (यह तीसरा भंग हुआ)।
रूपादि स्वरूप एकाकार अवभास की प्रतीति. मतलब निमित्तभुत विषय जो रूपादि है उस के अभाव में मतुप् प्रत्ययार्थ सम्बन्धि घट की विशेष्यरूप से प्रतीति नहीं हो सकती। फलतः ‘रूपादिमान् घटः' ऐसा व्यवहार लुप्त हो जाने पर सम्बन्धी का भी अभाव हो जाने से आखिर घट अवाच्य
रह गया। अनेकान्त वाद में तो घट एवं रूपादि का कथंचिद भेदाभेद होने से कथंचिद अवक्तव्य 25 भी हो सकता है।१५।
[बाह्य-अभ्यन्तर रूपों से भंगत्रय निष्पत्ति - १६ ] १६ वा प्रकार :- बाह्य घट घट का पर रूप है (बाह्य होने से ।) उपयोगात्मक यानी ज्ञानात्मक आन्तर घट घट का स्व-रूप हैं। इन दोनों रूपों से एक साथ विवक्षा करने पर घट अवक्तव्य हो
जायेगा। ये प्रथम-द्वितीय और तृतीय भंग हुए। स्पष्टता :- 'जो उपयोग है वह घट है' इस व्याप्ति 30 में तो उपयोगमात्र यानी सभी उपयोग घट है ऐसा फलित होने से घट का कोई नियत स्व रूप
तय न होने से घट का अभाव आ पडेगा तो उस रूप से घट अवाच्य हो गया। एवं, जो घट है वह उपयोग है ऐसी व्याप्ति करेंगे तो उपयोग में बाह्यार्थत्व प्रसक्त होने से उपयोग लुप्त हो जायेगा,
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