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खण्ड - ३,
गाथा-४६
न च त्र्यात्मकत्वमन्तरेण घटस्य कपालदर्शनाद् विनाशानुमानं सम्भवति, तत्र तेषां प्रतिबन्धानवधारणात् । न हि तद्विनाशनिमित्तानि तानि मुद्गरादिहेतुत्वात् अभावस्य कारणत्वाभावाच्च । यद्यपि घटहेतुकानि तानि तथापि घटसद्भावमेव गमयेयुः न तदभावम् ? न हि धूमः पावकहेतुकस्तदभावगमक उपलब्धः। न चाभिन्ननिमित्तजन्यता तयोः प्रतिबन्धः अभावस्याऽकार्यताभ्युपगमात् । नापि तादात्म्यलक्षणः तयोः तादात्म्यायोगात्। न च घटस्वरूपव्यावृत्तत्वात्तेषां तदभावप्रतिपत्तिजनकत्वम् सकलत्रैलोक्याभाव- 5 प्रतिपत्तिजनकत्वप्रसक्तेः तेषां ततोपि व्यावृत्तस्वरूपत्वात् । न च घटविनाशरूपत्वात्तेषां नायं दोष:, तेषां वस्तुरूपत्वात् विनाशस्य च नि:स्वभावत्वात् तथा च तादात्म्यविरोधः अन्यथा घटानुपलम्भवत् तेषामपि तदानुपलब्धिर्भवेत्। तस्मात् प्रागभावात्मकः सन् घटः प्रध्वंसाभावात्मकतां प्रतिपद्यत इत्यभ्युपगन्तव्यम् अन्यथा पूर्वोक्तदोषानतिवृत्तिः ।
नहीं बन सकती। यदि भिन्न उत्पादादि से भी तदात्मकता हो सके तो पूरे विश्व में सर्व में सर्वात्मकता 10 दोष प्रसक्त होगा ।
अभावदोष भी नहीं है क्योंकि वस्तु है और वस्तु की त्रयात्मकता भी भासित होती है फिर उस का अभाव कैसे ? यदि त्रयात्मक वस्तु का अभाव हो तो वस्तु का जो निर्बाध प्रतिभास होता है वह लुप्त हो जायेगा । वस्तु न होने पर भी निर्बाध प्रतिभास की सत्ता मानी जाय तब तो सर्वशून्यता प्रसक्त होने से सकल शिष्ट व्यवहारों का उच्छेद प्रसक्त होगा ।
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[ घट को त्रि-आत्मक न मानने पर दोष - परम्परा ]
त्रि- आत्मकता के विना कपालदर्शन से घट के नाश का अनुमान सम्भव नहीं होगा । कारण :दर्शन में घट के नाश का व्याप्तिसम्बन्ध गृहीत नहीं होगा । कपाल के कारणों को घट के विनाश के हेतु नहीं मान सकेंगे क्योंकि कपाल तो मोगरप्रहारादिहेतुक है, विनाशात्मकाभाव तो निष्कारण होता है । यद्यपि कपाल घटहेतुक होते हैं किन्तु वे घटाभाव का ज्ञान कैसे करायेंगे ? प्रत्युत, कपाल तो घट 20 के अस्तित्व का भान करायेंगे। अग्निहेतुक धूम अग्नि के अस्तित्व का भान करा सकता है न अग्नि के अभाव का । नाशात्मक अभाव को बौद्धमत में कार्य नहीं माना जाता, अतः कपाल और घटविनाश में अभिन्नकारण ( दण्डादिप्रहार अथवा घट ) जन्यता रूप प्रतिबन्ध भी नहीं हो सकता । तादात्म्यात्मक प्रतिबन्ध भी नहीं घट सकता, क्योंकि आप के मत में भाव (कपाल) और विनाशरूप अभाव का तादात्म्य मान्य नहीं । यदि कहें कि
'दोनों ही घटस्वरूप से व्यावृत्त होने से कपालों से घटविनाश प्रतीति 25
हो जायेगी' तो यह गलत है क्योंकि सारा त्रैलोक्य घटव्यावृत्त होने से सकल त्रैलोक्याभाव की प्रतीति कपालों से प्रसक्त होगी क्योंकि कपाल भी घटव्यावृत्तिस्वरूप हैं । 'कपाल भी घटविनाशरूप होने से उक्त दोष नहीं होगा' ऐसा मत कहना क्योंकि कपाल तो वस्तुरूप है जब कि विनाश तो स्वभावविहीन दोनों की एकरूपता होगी कैसे ? एकरूपता के विरह में तादात्म्य प्रतिबन्ध मानना विरोधग्रस्त है । फिर भी तादात्म्य मानेगें तो नाशकाल में घट का उपलम्भ नहीं होता तो कपालों का भी उपलम्भ 30 नहीं होगा । आखिर ऐसा मानना पडेगा कि पहले प्रागभावात्मक सत् घट अब प्रध्वंसाभावात्मकता को आत्मसात् करता है, ऐसा नहीं मानेंगे तो पूर्वोक्त सभी दोषों की आवृत्ति चलती रहेगी ।
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