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खण्ड-३, गाथा-४०
अथानन्तधर्मात्मके वस्तुनि तत्प्रतिपादकवचनस्य सप्तधा कल्पने अष्टमवचनविकल्पपरिकल्पनमपि किं न क्रियते इति न वक्तव्यम्, तत्परिकल्पननिमित्ताभावात् । तथाहि- न तावत् सावयवात्मकमन्योन्यनिमित्तकं तत् परिकल्पयितुं युक्तम् चतुर्थादिवचनविकल्पेषु तस्यान्तर्भावप्रसक्तेः । नापि निरवयवात्मकमन्योन्यनिमित्तकं तत् परिकल्पनामर्हति प्रथमादिष्वन्तर्भावप्रसक्तेः। न च गत्यन्तरमस्तीति नाष्टभंगपरिकल्पना युक्ता।
किञ्च, असौ क्रमेण वा तद्धर्मद्वयं प्रतिपादयेत् यौगपद्येन वा ? प्रथमपक्षे गुणप्रधानभावेन तत्प्रतिपादने प्रथमद्वितीययोरन्तर्भावः प्रधानभावेन तत्प्रतिपादने चतुर्थे । यौगपद्येन तत्प्रतिपादने तृतीये, भङ्गकसंयोगकल्पनया भङ्गान्तरकल्पनायां प्रथम-द्वितीयभंगकसंयोगे चतुर्थभङ्गक एव प्रसज्यते । प्रथम-तृतीयसंयोगात् पञ्चमप्रसक्तिः । द्वितीय-तृतीयसंयोगात् षष्ठप्रसक्तिः, प्रथम-द्वितीय-तृतीय-संयोगात् सप्तमः, प्रथम-चतुर्थादिसंयोगकल्पनायां पुनरुक्तदोषः। तस्माद् न कथञ्चिदष्टमभङ्गसम्भवः इत्युक्तन्यायात् वस्तुप्रतिपादने सप्तविध एव 10 वचनमार्गः ।।४।।
[ आठवा भंग युक्तिसंगत क्यों नहीं ? - उत्तर ] प्रश्न :- वस्तु जब अनन्तधर्मात्मक है तब उन एक एक धर्म के प्रतिपादक वचनों के सिर्फ सात ही भंगों की कल्पना क्यों ? आठवे वचन (= भंग) की कल्पना क्यों नहीं किया ?
उत्तर :- ऐसा मत पूछो ! आठवे वचन की कल्पना करने के लिये जो निमित्त मिलना चाहिये 15 वह नहीं है। देखिये- अन्योन्य अस्तित्वादिनिमित्तों से जो सावयव भङ्गों की कल्पना की गयी है (चार से सात भंग) उन से अतिरिक्त सावयव भंगकल्पना के लिये कोई निमित्त नहीं है, क्योंकि जो भी होगा- चतुर्थादि वचन विकल्पों में ही उन निमित्तों का अन्तर्भाव हो जायेगा। तथा, १-२-३ भंगों से अतिरिक्त निरवयवात्मक भी अन्योन्यनिमित्त कल्पनाह नहीं है क्योंकि जो भी वैसा निमित्त खोजेंगे उनका प्रथम-द्वितीय-तृतीय में ही अन्तर्भाव हो जायेगा। और कोई चारा नहीं है अतः आठवे भंग 20 की कल्पना युक्तिसंगत नहीं है। ___और एक बात :- कदाचित् आठवे भंग के निमित्त को खोज डाला :- तो प्रश्न ऊठेगा कि वह क्रमशः धर्म युगल का प्रतिपादन करेगा या एक साथ ? प्रथम क्रमिक पक्ष में, गौण-मुख्य भाव
से भङ्ग-प्रतिपादन करने पर पहले और दूसरे भंग में ही अन्तर्भाव हो जायेगा। दोनों धर्मों का क्रमशः । प्रधानरूप से प्रतिपादन करेंगे तो चौथे भंग में समावेश कर देंगे। यदि दूसरा पक्ष एक साथ किसी 25 भङ्ग का प्रतिपादन करना चाहेंगे तो तीसरे भंग में समावेश हो जायेगा। अगर, भंगों के संयोग से नये भंग की कल्पना करने जायेंगे तो प्रथम-द्वितीय के संयोग से चौथे भंग में प्रवेश होगा। प्रथमतृतीय के संयोग से नया भंग बनाएंगे तो पाँचवे भंग में, द्वितीय-तृतीय के संयोग से नया भंग बनाएँगे तो छठे भंग में, आद्य तीन के संयोग से नया भंग बनाएँगे तो सातवे भंग में प्रवेश होगा। पहला-चौथा इत्यादि संयोग की कल्पना करेंगे तो पुनरुक्ति का ही दोष होगा। सारांश, किसी भी 30 तरह आठवाँ भंग सम्भव नहीं। अतः पूर्वोक्त तर्कानुसार वस्तु का निरूपण करने में सप्त प्रकार वाला ही वचनमार्ग प्रस्थापित होता है।।४० ।।
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