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खण्ड-३, गाथा- ४३
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यथा वर्त्तमानकालसम्बन्धितया यद् द्रव्यमर्पितं = प्रतिपादयितुमिष्टं तत् तथैवास्ति नान्यथा अनुत्पन्नविनष्टतया भावि भूतयोरविद्यमानत्वेनाऽप्रतिपत्तेः, अप्रतीयमानयोश्च प्रतिपादयितुमशक्तेरतिप्रसंगाद् वर्त्तमानसम्बन्धिन एव तस्य प्रतीतेः इति पर्यायार्थिकनयवाक्यस्याभिप्रायः । एतद् अनेकान्तवादी दूषयितुमाह- न इति प्रतिषेधे स इति तथाविधो वाक्यनयः परामृश्यते समय इति सम्यग् ईयते = परिच्छिद्यत इति समयोऽर्थः तस्य प्रज्ञापना = प्ररूपणा पर्यायनयमात्रे द्रव्यनयनिरपेक्षे पर्यायनये प्रतिपूर्णा = पुष्कला 5 सम्पद्यते । न स वाक्यनयः सम्यगर्थप्रत्यायनां पूरयतीति यावत्, पर्यायनयस्य सावधारणैकान्तप्रतिपादनरूपस्याध्यक्षबाधनात् तद्बाधां चाग्रतः प्रतिपादयिष्यति । । ४२ ।।
द्रव्यार्थिकवाक्यनयेऽप्ययमेव न्यायः इति तदभिप्रायं तावदाह
(मूलम्- ) पडिपुण्णजोव्वणगुणो जह लज्जइ बालभावचरिएण । कुणइ य गुणपणिहाणं अणागयसुहोपहाणत्थं । । ४३ ।।
व्याख्यार्थ :- पर्यायार्थिक नय को ऐसा अभिप्रेत है कि द्रव्य वर्त्तमानक्षणमात्र में विद्यमानतया ही प्रतिपादित किया जाय वह द्रव्य भी तब वर्त्तमानक्षणमात्रवृत्ति ही होता है, अन्यकालवृत्तित्व मान्य नहीं । भावि काल अनुत्पन्न है और भूतकाल विनष्ट है अतः वर्त्तमानभिन्न काल में विद्यमान रूप से द्रव्य का स्वीकार नहीं हो सकता । भूत और भावि काल अदृश्य है अतः उन का या उन में द्रव्यसत्ता का प्रतिपादन अशक्य - अयुक्तिक है। किसी तरह आँख मूंद कर करे तो खरविषाण की सत्ता के 15 प्रतिपादन का अतिप्रसंग होगा । द्रव्य तो वर्त्तमानकालसम्बन्धितया ही दृश्यमान होता है । यह पर्यायार्थिक नय का अभिप्राय है ।
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[ एकान्तवाद की समीक्षा ]
इस पर्यायनय के एकान्तवाद के प्रति अनेकान्तवादी गाथा उत्तरार्ध में दोषारोपण करता है वह वाक्यनय यानी पर्यायनय द्रव्यनयनिरपेक्ष पर्यायनयमात्रप्ररूपणा में प्रतिबद्ध ( = प्रतिपूर्ण) है किन्तु 20 समयप्रज्ञापनारूप नहीं है । जो सम्यक् प्रकार से ज्ञात किया जाय ऐसे अर्थ को 'समय' कहा जाता है, प्रज्ञापना यानी प्ररूपणा । गाथा में 'न' पद प्रतिषेधसूचक है और 'स' पद वाक्यनय का परामर्शकारी है । भावार्थ यह है कि वाक्यनय सम्यक् अर्थ-प्रतीति की आशा पूर्ण नहीं करता । कारण :- अवधारण (= आग्रहपूर्ण) सहित एकान्तमत का प्रतिपादन करनेवाला होने से वाक्य नय प्रत्यक्षतः बाधित है। कैसे ? यह अग्रिम ग्रन्थ में कहा जायेगा । । ४२ ।।
[ द्रव्यार्थिकनय का उदाहरण ]
पर्यायार्थिकवाक्यनय का एकान्तवाद में जिस न्याय से अनौचित्य प्रदर्शित किया गया है उसी न्याय से अब द्रव्यार्थिकवाक्यनय में भी एकान्तवाद का अनौचित्य सूचित करने के अभिप्राय से ४३ वीं गाथा में कहते हैं
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गाथार्थ :- प्रतिपूर्ण यौवन गुणशाली जैसे बाल्यभाव आचरण से लज्जित होता है और अब ( युवावय 30 में) भावि सुखप्राप्ति के लिये गुणों का प्रणिधान करता है ।। ४३ ।।
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