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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड - १
पदलाञ्छितवाक्यात् प्रतीते: ' स्यादस्ति घटः १ स्यान्नास्ति घटः २ स्यादवक्तव्यो घटः ३' इत्येते त्रयो भङ्गाः सकलादेशाः । विवक्षाविरचितद्वित्रिधर्मानुरक्तस्य स्यात्कारपदसंसूचितसकलधर्मस्वभावस्य धर्मिणो वाक्यार्थरूपस्य प्रतिपत्तेश्चत्वारो वक्ष्यमाणका विकलादेशाः ' स्यादस्ति च नास्ति घटः' इति प्रथमो विकलादेशः १, ' स्यादस्ति चाऽवक्तव्यश्च घट' इति द्वितीयः २, 'स्यान्नास्ति चावक्तव्यश्च घटः' इति 5 तृतीय: ३, ' स्यादस्ति च नास्ति चाऽवक्तव्यश्च घटः' इति चतुर्थः ४ ।
एत एव सप्त भङ्गाः स्यात्पदलाञ्छनविरहिणोऽवधारणैकस्वभावा विषयाभावतो दुर्नया भवन्ति । धर्मान्तरोपादानप्रतिषेधाऽकरणात् स्वार्थमात्रप्रतिपादनप्रवणा एते एव सुनयरूपतामासादयन्ति। स्यात्पदलाञ्छनविवक्षितैकधर्मावधारणवशाद् वा सुनयाः सद्द्रव्यादेरेकदेशस्य व्यवहारनिबन्धनत्वेन विवक्षितत्वात् अव्ययपद है उस से विशिष्ट यह जो वाक्य है उस से प्रतीत होने वाला वाक्यार्थ है सत्त्वभिन्न 10 अपेक्षित सकलघटनिष्ठधर्मसमानाधिकरण विवक्षानुसार प्राधान्ययुत एक सत्त्वधर्म विशिष्ट घट है । दूसरे भंग में वाक्य है 'स्याद् घटो नास्ति' । यहाँ ' स्याद्' अव्ययपदगर्भित इस वाक्य से प्रतीत होनेवाला वाक्यार्थ ऐसा है असत्त्वभिन्न अपेक्षित सकलघटनिष्ठ धर्मसमानाधिकरण विवक्षानुसारप्राधान्य असत्त्व धर्म से विशिष्ट घट है। तीसरे भंग में वाक्य है ' स्याद् अवक्तव्यो घटः' (कथंचिद् घट है ।) स्याद् अव्ययपदघटित इस वाक्य से प्रतीत होनेवाला वाक्यार्थ इस प्रकार है 15 अपेक्षित सकलघटनिष्ठधर्म समानाधिकरण विवक्षानुसारप्राधान्ययुत एक अवाच्यत्वधर्म से विशिष्ट घट है । ये तीन भंग सकलादेश हैं ।
अवाच्यत्वभिन्न
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[ विकलादेश के उत्तर चार भंगों का स्वरूप ]
सत् एवं असत् हैं ) । २ 20 दूसरा भंग- वाक्य है ।
इसी तरह विकलादेश के चार भंग वाक्य हैं १ स्याद् अस्ति च नास्ति घट (घट कथंचिद् स्याद् अस्ति चावक्तव्यश्च घटः (घट कथंचिद् सत् एवं अवक्तव्य है) यह ३ ‘स्याद् नास्ति चावक्तव्यश्च घटः' (घट कथंचिद् असत् और अवक्तव्य है ) तीसरा भंगवाक्य हुआ । ४ चतुर्थ भंगवाक्यः स्याद् अस्ति च नास्ति च अवक्तव्यश्च घटः (घट कथंचित् सत् है असत् है और अवक्तव्य है ) । इन में से चौथे-पाँचवे -छट्टे भंगवाक्य का वाक्यार्थ पूर्वोक्त रीति से स्यात्पदसंसूचित अन्य सकलधर्मस्वभावसंमिलित (क्रमशः) विवक्षित सत्त्व असत्त्व, अथवा सत्त्वअवक्तव्यत्व, अथवा असत्त्व - अवक्तव्यत्व इन दो धर्मों से विशिष्ट और सातवे भंगवाक्य का सत्त्व असत्त्व25 अवक्तव्यत्व तीन धर्मों से विशिष्ट घट धर्मी है ।
[ नय - दुर्नय - सुनय - प्रमाण का विभाग एवं व्यवहारसम्पादन ]
प्रश्न : दुर्नय किसे कहते हैं ? सुनय किसे कहते हैं ? प्रमाण किसे कहते हैं ?
उत्तर :- स्यात् पदसांनिध्यरहित निर्धारण (= जकार ) युक्त एकमात्र स्वभाववाले ये ही सात भंग दुर्नय हैं क्योंकि एकान्ततः ऐसा कोई विषय है नहीं। ये ही सात नय जब धर्मान्तरसामानाधिकरण्य 30 का निषेध न करते हुए सिर्फ अपने इष्ट अर्थमात्र का प्रतिपादन करने में मशगुल रहेंगे तब 'सुनय' पदवी प्राप्त करेंगे। अथवा स्यात्पदपूर्वक किसी एक विवक्षित सत्त्वादि धर्म का भारपूर्वक प्रतिपादन करे तो ये सुनय हैं। कारण : अन्य धर्मों का निषेध नहीं है और 'सत् द्रव्यम्' इत्यादि व्यवहारकारक
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