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खण्ड - ३,
३४१
तदभावेऽभावात् । अथातीतानागतक्षणवद् वर्त्तमानक्षणरूपतया अप्यघटः, एवं सति सर्वदा तस्याभावप्रसक्तिः । एकान्तपक्षेऽप्ययमेव दोष इत्यभावादेव अवाच्यः । ५ ।
यद्वा क्षणपरिणति रूपे घटे लोचनजप्रतिपत्तिविषयत्वाऽ विषयत्वाभ्यां निजार्थान्तरभूताभ्यां सदसत्त्वात् प्रथम-द्वितीयौ भंगी । ताभ्यां युगपदादिष्टोऽवाच्यः । तथाहि - यदि लोचनजप्रतिपत्तिविषयत्वेनेव यदीन्द्रियान्तरजप्रतिपत्तिविषयत्वेनापि घटः स्याद् इन्द्रियान्तरकल्पनावैयर्थ्यप्रसक्तिः इन्द्रियसङ्करप्रसक्तिश्च । 5 अथेन्द्रियान्तरजप्रतिपत्तिविषयत्वेनेव चक्षुर्जप्रतिपत्तिविषयत्वेनापि न घटः तर्हि तस्याऽरूपत्वप्रसक्तिः एकान्तवादेऽपि तदितराभावे तस्याप्यभावादवाच्य एव । ६ ।
अथवा, लोचनजप्रतिपत्तिविषये तस्मिन्नेव घटे 'घटशब्दवाच्यता निजं रूपम्, 'कुट' शब्दाभिधेयत्वमर्थान्तरभूतं रूपम्, ताभ्यां सदसत्त्वात् प्रथम-द्वितीयौ । युगपत्ताभ्यामभिधातुमिष्टोऽवाच्यः । यदि हि 'घट'शब्दवाच्यत्वेनेव 'कुट' शब्दवाच्यत्वेनापि घटः स्यात् तर्हि त्रिजगत एकशब्दवाच्यताप्रसक्तिः घटस्य 10 वाऽशेषपटादिशब्दवाच्यत्वप्रसक्तिरिति घटशब्दवाच्यप्रतिपत्ती समस्ततद्वाचकशब्दप्रतिपत्तिप्रसङ्गश्च । तथा
होगा । उपरांत, क्षण की वर्त्तमानता भी पूर्वोत्तरक्षण सापेक्ष ही होती है, पूर्वोत्तरक्षणों का लोप होने पर वर्त्तमानता भी कैसे बचेगी ? फलतः वर्त्तमानता के लोप से घट का भी अभाव प्रसक्त होगा । दूसरी ओर, अतीतानागत क्षणों की तरह वर्त्तमान में भी घट 'असत्' मानेंगे तो सदा काल घट का अभाव ही अचल रह जायेगा, घट तो रहेगा ही नहीं । उभय के एकान्तवाद में भी ये ही दोष प्रसक्त 15 हैं, घट का सत्त्व बचेगा नहीं, आखिर अवाच्यता प्रवेश पायेगी । ५ ।
[ इन्द्रियग्राह्यत्व - अग्राह्यत्व से तीन भंग
६]
छट्ठा प्रकारः घट जो क्षणपरिणतिरूप है वह नेत्रजन्यप्रतीतिविषयत्वरूप से 'सत्' है और श्रोत्रादिजन्यप्रतीतिविषयत्वेन 'असत्' है। ये पहला दूसरा भंग हुआ। एक साथ उन दोनों की विवक्षा रखने पर अवाच्य है यह तीसरा भंग हुआ । स्पष्टता :- यदि घट वस्तु नेत्रजन्यप्रतीतिविषयत्वेन 20 जैसे 'सत्' है वैसे अन्य श्रोत्रादिइन्द्रियविषयत्वेन भी 'सत्' माना जाय तो किसी भी एक इन्द्रियगोचर हो जाने से अतीन्द्रिय अन्येन्द्रियों की कल्पना निरर्थक ठहरेगी, अथवा इन्द्रियों में सांकर्य दोष आ पडेगा। मतलब, इन्द्रियों का यह सुननेवाला श्रोत्र, यह देखनेवाला नेत्र ऐसा स्पष्ट विभाग लुप्त हो जायेगा। दूसरी ओर, जैसे अन्येन्द्रियजन्यप्रतीतिविषयत्वरूप से घट असत् होता है वैसे नेत्रेन्द्रियजन्यप्रतीतिविषयत्वेन भी वह असत् होगा तो, घट का रूप किसी भी इन्द्रिय से गृहीत न होने के कारण नीलरूप सिद्ध 25 होगा। सत् या असत् का एकान्त पकडने पर एक के निरसन से दूसरा भी निरस्त हो जाने से आखिर घट अवाच्य बनेगा | ६ |
गाथा - ३६
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[ घटकुटशब्दवाच्यत्वावाच्यत्व प्रयुक्त तीन भंग
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सातवाँ प्रकारः- चाक्षुषविषय घट में 'घट' शब्दवाच्यता स्व-रूप है, कुटादिशब्दवाच्यता पर रूप है; (पर्यायभेद से वस्तुभेद वादी समभिरूढ नय से यह भेद हैं ।) यहाँ स्वरूप से सत्त्व प्रथमभंग, 30 पररूप से असत्त्व दूसरा भंग, दोनों मिला कर एकसाथ विवक्षित करने पर अवाच्य तीसरा भंग होगा । घट जैसे यहाँ घटशब्दवाच्यतात्मक स्वरूप से 'सत्' है वैसे कुटादिशब्दवाच्यतात्मक पर- रूप से
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