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खण्ड-३, गाथा-३६
३४३ विविक्तरूपोपयोगप्रतिपत्तिर्न भवेत्। तदुपयोगरूपेणापि यद्यघटो भवेत् तदा सर्वाभावः अविशेषप्रसङ्गो वा। न चैवम् तथाऽप्रतीतेः। एकान्तपक्षेप्ययमेव प्रसङ्गः इत्यवाच्यः ।९।
अथवा सत्त्वम् असत्त्वं वा अर्थान्तरभूतम् निजं घटत्वम् ताभ्यां प्रथम-द्वितीयौ। अभेदेन ताभ्यां निर्दिष्टो घटोऽवक्तव्यो भवति। तथाहि- यदि सत्त्वमनूद्य घटत्वं विधीयते तदा सत्त्वस्य घटत्वेन व्याप्तेर्घटस्य सर्वगतत्वप्रसङ्गः। तथाभ्युपगमे प्रतिभासबाधा व्यवहारविलोपश्च। तथाऽसत्त्वमनूद्य यदि 5 घटत्वं विधीयते तर्हि प्रागभावादेश्चतुर्विधस्यापि घटेन व्याप्तेर्घटत्वप्रसङ्गः । अथ घटत्वमनूद्य यदि घटत्वं विधीयते तदा घटत्वं यत् तदेव सदसत्त्वे इति घटमात्रं सदसत्त्वे प्रसज्येते तथा च पटादीनां प्रागभावादीनां चाभावप्रसक्तिरिति प्राक्तनन्यायेन विशेषण-विशेष्यलोपात् ‘सन् घटः' इत्येवमवक्तव्य: ‘असन् घटः' उपयोगरूप घट अवाच्य बन गया यह तीसरा भंग हुआ। जैसे उपयोगरूप घट विवक्षितअर्थबोधकत्वरूप से 'सत्' है वैसे यदि इतर (अविवक्षितार्थबोधकत्वरूप) से भी 'सत्' माना जाय तो भिन्न भिन्न शब्दों 10 से भिन्न भिन्न अर्थनियत उपयोग की संगति नहीं हो सकेगी। कारण :- एक एक शब्द जन्य उपयोग विवक्षित के समान अविवक्षित अर्थों का बोधक बन जायेगा तो तत्तत् शब्द जन्य उपयोग सकल अर्थविषयक हो जायेगा। इस तरह विविक्त यानी विभिन्नविषयकत्व रूप से उपयोग की प्रतिपत्ति उपपन्न नहीं होगी। तथा यदि उपयोगरूप घट घटपटजन्यज्ञानात्मकनियत रूप यानी इष्टघटबोधकत्व रूप से भी असत् होगा तो अविशेषरूप से अन्य रूप और स्वरूप से सर्व का अभाव प्रसक्त होगा, अथवा 15 उक्त उपयोग में निर्विषयक पदार्थों का वैलक्षण्य लुप्त हो जायेगा। किन्तु ऐसा प्रतीत न होने से मान्य नहीं है। एकान्तमत में तो ये दोष प्रसक्त ही हैं अतः उस में उपयोगघट बिलकुल अवाच्य हो जायेगा।९ ।
[घटत्व एवं सत्त्वासत्त्व स्व-पररूपों से भंगत्रय - १० । १० वा प्रकार :- विशेषवादी कहेगा – घटत्व घट का स्व-रूप है (क्योंकि सर्वसाधारण नहीं है) सत्त्वासत्त्व घट का पर रूप हैं (क्योंकि सर्वसाधारण सामान्यरूप है।) यहाँ स्व-रूप घटत्व से घट 20 'सत्' है - प्रथम भंग हुआ, पररूप सत्त्व या असत्त्व से घट असत् है - यह दूसरा भंग हुआ। अभेदरूप से उभय मिला कर देखें तो घट अवाच्य है। स्पष्टता :- सत्त्व-असत्त्व पर-रूप इसलिये हैं कि यदि सत्त्व को उद्देश कर के घटत्व का विधान करे (यत् सत्त्वं तत् घटत्वम्, यत् असत्त्वं तद्
में तादात्म्य से घटत्व की व्याप्ति प्रसक्त होने से. सत्त्व की तरह घटत्व भी सर्वगत बन जायेगा (घट मात्र में सीमित नहीं रहेगा।) और ऐसा मान्य किया जाय तो पटादि में घटभेद 25 का प्रतिभास होता है उस का बाध प्राप्त होगा। एवं पटादि में घटभिन्नता का व्यवहार होता है उस का लोप होगा। यदि यद् असत्त्वं तत् घटत्वम् इस तरह असत्त्व को उद्देश कर के घटत्व का विधान करेंगे तो असत्त्व में तादात्म्य से घटत्व की व्याप्ति प्राप्त होने से, प्रागभावादि चार प्रकार के असद् रूप अभाव में घटत्व घुस जायेगा।
यदि घटत्व को उद्देश कर के सत्त्व/असत्त्व का विधान करेंगे तो ‘यद् घटत्वं तत् सत्त्वम् असत्त्वम् 30 वा' ऐसी व्याप्ति प्राप्त होने से, सत्त्व और असत्त्व सिर्फ घटत्वरूप ही रह जायेंगे (पटत्वादि रूप नहीं रह पायेंगे, फलतः सिर्फ घट में ही सत्त्व/असत्त्व का पर्यावसान होगा। आखिर पटादि का अथवा
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