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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड - १
घटशब्देनापि यद्यवाच्यः स्यात् घटशब्दोच्चारणवैयर्थ्यप्रसक्तिः । एकान्याभ्युपगमेऽपि घटस्यैवाऽसत्त्वात् संकेतद्वारेणापि न तद्वाचकः कश्चित् शब्द इत्यवाच्य एव । ७ ।
अथवा घटशब्दाभिधेये तत्रैव घटे हेयोपादेयान्तरंग-बहिरंगोपयोगानुपयोगरूपतया सदसत्त्वात् प्रथमद्वितीयौ। ताभ्यां युगपदादिष्टोऽवाच्यः । यदि हि हेय - बहिरंगानर्थक्रियाकार्यसंनिहितरूपेणाप्यर्थक्रियाक्षमादि5 रूपेणेव घटः स्यात् पटादीनामपि घटत्वप्रसक्तिः । तद्वद् यद्युपादेयसंनिहितादिरूपेणाप्यघटः स्यात् अन्तरंगस्य वक्तृ-श्रोतृगतहेतुफलभूतघटाकारावबोधकविकल्पोपयोगस्याप्यभावे घटस्याप्यभावप्रसङ्ग इत्यवाच्यः । एकान्ताभ्युपगमेऽप्ययमेव प्रसङ्गः इत्यवाच्यः ॥८ ॥
अथवा, तत्रैवोपयोगेऽभिमतार्थावबोधकत्वानभिमतार्थानवबोधकत्वतः सदसत्त्वात् प्रथम-द्वितीयौ। ताभ्यां युगपदादिष्टोऽवाच्यः । विवक्षितार्थप्रतिपादकत्वेनेवेतरेणापि यदि घटः स्यात् प्रतिनियतोपयोगाभावः । तथाभ्युपगमे 10 भी 'सत्' माना जाय तो त्रैलोक्य की सर्व वस्तु में प्रत्येकशब्दवाच्यता प्रसक्त होगी, अथवा घट में पटादिसमस्त शब्दों की वाच्यता प्रसक्त होगी । तथा घट दर्शन से घटशब्दवाच्यता जैसे ज्ञात हो जाती है, पूर्वोक्त रीति से सभी शब्द घट के वाचक हो जाने पर घट में समस्त शब्दों की वाच्यता का भान प्रसक्त होगा । तथा, घट को कुटादिशब्दों से जैसे 'अवाच्य' कहा है वैसे 'घट' पद से भी अवाच्य माना जाय तो 'घट' पद का उच्चारण व्यर्थ बन जायेगा । एकान्तमत से तो घट पदार्थ ही संगत 15 न होने से, उस वाचक कोई सांकेतिक शब्द न होने के कारण अवाच्य ठहरेगा । ७ ।
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[ उपादेयादि यादि रूप प्रयुक्त तीन भंग आठवाँ प्रकार :- घटशब्दवाच्य घट का उपादेय, अन्तरंग, उपयोग ये स्व-रूप है। हेय, बहिरंग, अनुपयोग ये पर-रूप हैं । घटार्थी के लिये अथवा जलाहरणादि अर्थक्रिया के अर्थी के लिये घट उपादेय है, पटादि हेय है। घटाध्यवसाय घट का अन्तरंगरूप है। मिट्टी आदि घट का बहिरंग रूप है । कुलाल 20 घटनिर्माणकाल में घटोपयोग (यानी घटनिर्माणक्रियाज्ञान) में तन्मय बन जाता है। यदि उस वक्त वस्त्रनिर्माण
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का विचार करे तो घट में अनुपयोग हो जाता है । उपादेयादि स्व-रूपों से घट 'सत्' है, अनुपादेय यानी हेय आदि पर रूपों से घट 'असत्' है । उभय की एक साथ विवक्षा रखने पर अवाच्य है । उपादेयादि अर्थक्रियाक्षम-संनिहित रूपों से घट जैसे सत् होता है उसी तरह यदि हेय-बहिरंग - अनर्थक्रिया -क्षम-असंनि रूपों से भी घट को 'सत्' मानेंगे तो वैसे पटादि भी घट स्वरूप बन जायेंगे क्योंकि उन रूपों से पटादि 25 भी 'सत्' होते हैं फिर सत् सत् का अभेद होने से पटादि घटरूप क्यों नहीं होंगे ? वैसे ही यदि उपादेय-संनिहितादि रूपों से भी घट 'असत्' मानेंगे तो वक्ता श्रोता को कारण-कार्यभूत उभयगत घटाकर बोधक विकल्पात्मक उपयोग का लोप प्रसक्त होने से घट का भी लोप प्रसक्त होगा, अतः घट अवाच्य बन जायेगा । पूर्ववत् एकान्त सत् / असत् मानने पर भी असत्त्व प्रयुक्त अवाच्यत्व फलित होगा । ८ । [ इष्टार्थबोधकत्व - अबोधकत्वरूप से तीन भंग
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नववाँ प्रकार :- शब्दजन्य उपयोग में इष्ट यानी विवक्षित अर्थबोधकता होती है, अनिष्ट अविवक्षित अर्थबोधकता नहीं होती, अतः उपयोगात्मक घट उक्त दो रूपों से 'सत्' और 'असत्' होता है, ये प्रथम एवं द्वितीय भंग निष्पन्न हुए। दोनों रूपों से युगपद् ( = एक साथ) विवक्षा रखने पर
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