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खण्ड-३, गाथा-३६
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तत्प्रतिपादकं नापि वाक्यं सम्भवति। समासषट्के तावद् न बहुव्रीहिरत्र समर्थः तस्यान्यपदार्थप्रधानत्वात् अत्र चोभयप्रधानत्वात् । अव्ययीभावोऽपि नात्र प्रवर्तते तस्यात्रार्थेऽसम्भवात् । द्वन्द्वसमासे तु यद्यप्युभयपदप्राधान्यम् तथापि द्रव्यवृत्तिस्तावद् न प्रकृतार्थप्रतिपादकः, गुणवृत्तिरपि द्रव्याश्रितगुणप्रतिपादकः द्रव्यमन्तरेण गुणानां तिष्ठत्यादिक्रियाधारत्वासम्भवात् तस्या द्रव्याश्रितत्वाद् न प्रधानभूतयोर्गुणयोः प्रतिपाद्यत्वम्। तत्पुरुषोऽपि नात्र विषये प्रवर्त्तते तस्याप्युत्तरपदार्थप्रधानत्वात् । नापि द्विगु:, संख्यावाचिपूर्वपदत्वात् तस्य । कर्मधारयोऽपि 5 न, गुणाधारद्रव्यविषयत्वात्। न च समासान्तरसद्भावः येन युगपद् गुणद्वयं प्रधानभावेन समासपदवाच्यं स्यात्। अत एव न वाक्यमपि तथाभूतगुणद्वयप्रतिपादकं सम्भवति तस्य वृत्त्यभिन्नार्थत्वात्। न च केवलं तीसरा भंग अवक्तव्य इस लिये है कि जब सत्त्व-असत्त्व दोनों धर्मों को तुल्य महत्त्व दे कर अथवा तुल्यतया गौण कर के दोनों का एक साथ प्रतिपादन करने की विवक्षा रहने पर भी एक साथ प्रतिपादन करने के लिये कोई वचन सक्षम नहीं मिल सकता। देखिये- (कोई एक पद से तो उभय का एकसाथ 10 प्रतिपादन शक्य नहीं है। या तो दो-पदवाले समास से या वाक्य से सम्भावना की जाय, किन्तु) छ: समास में से एक भी समासवचन या एक भी वाक्य एक साथ प्रधानतया (= विशेष्यरूप से) अथवा गौण (विशेषण) रूप से उभय का प्रतिपादन करने में समर्थ नहीं है।
[ बहव्रीहि-द्वन्द्व - अव्ययी समास की निष्फलता । बहुव्रीहि समास तो अन्यपदार्थ प्रधान होता है और प्रस्तुत में उभय की प्रधानता विवक्षित है 15 अतः बहुव्रीहि यहाँ सफल नहीं होगा। अव्ययीभाव का तो यहाँ सम्भव ही नहीं (क्योंकि उपकुम्भम् इत्यादि समास पूर्वपदार्थप्रधान होता है) अतः यहाँ उस की प्रवृत्ति निरुद्ध है। यद्यपि द्वन्द्वसमास में उभयपदप्राधान्य जरूर होता है, किन्तु जो द्रव्यवृत्ति यानी द्रव्यार्थक पदों का (उदा० धव-खदीरौ) द्वन्द्व होता है वहाँ अन्योन्य उद्देश्यता या विधेयता न होने से अपेक्षित प्रधानता या गौणता नहीं होती अतः इस की प्रस्ततार्थप्रतिपादकता नहीं हो सकती। गणवत्ति यानी गणार्थक पदों (रक्तपीते) का द्वन्द्व 20 समास भी उभय की प्रधानता या उभय की गौणता से उभय का प्रतिपादन नहीं कर सकता क्योंकि यह द्वन्द्व द्रव्याश्रित गुणों का प्रतिपादन करता है गौण मुख्यभाव से नहीं। द्रव्य के बिना, गुणों में स्थानादिक्रियाधारता नहीं हो सकती। द्रव्यों में ही स्थानादिक्रियाधारता हो सकती है क्योंकि क्रिया द्रव्याश्रित होती है। (क्रियावाचक तिष्ठति आदि पदों का द्वन्द्व समास नहीं होता।) अतः द्वन्द्व समास से प्रधान या गौण रूप से एक साथ उभय का निरूपण अशक्य है।
25 [तत्पुरुष-द्विगु-कर्मधारय समासों की निष्फलता ] तत्पुरुष समास उत्तरपदार्थ प्रधान होने के कारण इस विषय में उस की प्रवृत्ति शक्य नहीं। द्विगु समास में पूर्व पद संख्यावाचक होने से उस की भी प्रवृत्ति अशक्य है। कर्मधारय समास गुणाधारभूत द्रव्य का बोधक होने से उभय प्रधान/गौण रूप से अतिरिक्त कोई समास नहीं है जिस से कि एक साथ प्रधानभाव से गुणयुग्म का वाचन उस समास से हो सके। वाक्य का विकल्प (अभिन्नार्थक) 30 ही समास (वृत्ति) होता है, अतः जब समास एक साथ प्रधानभाव से उभय का वाचक नहीं है तो वाक्य भी प्रधानभाव से उभय गुणों का वाचक नहीं हो सकता। विग्रह या समास से भिन्न कोई
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