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खण्ड-३, गाथा-३२
३१५ अबाध्यमानत्वात्। न चाबाध्यमानप्रत्ययगोचरस्यापि स्फोटाख्यस्य वस्तुनोऽसत्त्वम्, अवयविद्रव्यस्याप्यसत्त्वप्रसक्तेः । एवमप्यवयव्यभ्युपगमे स्फोटाभ्युपगमोऽवश्यंभावी तत्तुल्ययोगक्षेमत्वात्। स च वर्णेभ्यो व्यतिरिक्तः नित्यः, अनित्यत्वे सङ्केतकालानुभूतस्य तदैव ध्वस्तत्वात् कालान्तरे देशान्तरे च गोशब्दश्रवणात् ककुदादिमदर्थप्रतिपत्तिर्न स्यात् असंकेतिताच्छब्दादर्थप्रतिपत्तेरसम्भवात्। सम्भवे वा द्वीपान्तरादागतस्य गोशब्दाद् गवार्थप्रतिपत्तिर्भवेत् संकेतकरणवैयर्थ्यं च प्रसज्येत । तस्मानित्यः स्फोटाख्या शब्दो व्यापकश्च सर्वत्रैक- 5 रूपतया प्रतिपत्तेः।
[ स्फोटवादनिरसनं वैशेषिके स्वप्रक्रियावर्णनं च ] असदेतद्- इति वैशेषिकाः । ते ह्याहुः - एकदा प्रादुर्भूता वर्णाः स्वार्थप्रतिपादका न भवन्तीत्यत्राऽविप्रतिपत्तिरेव क्रमप्रादुर्भूतानां न समुदाय इत्यत्राप्यविप्रतिपत्तिरेव अर्थप्रतिपत्तिस्तु उपलभ्यमानात् पूर्ववर्णध्वंसविशिष्टादन्त्यवर्णात् । न चाभावस्य सहकारित्वं विरुद्धम् वृन्त-फलसंयोगाभावस्येवाऽप्रतिबद्धगुरुत्व- 10 फलप्रपातक्रियाजनने, दृष्टं चोत्तरसंयोगं विदधत् प्राक्तनसंयोगाभावविशिष्टं कर्म, परमाण्वग्निसंयोगश्च परमाणौ तद्गतपूर्वरूपप्रध्वंसविशिष्टो रक्ततामुत्पादयन्। स्फोटसंज्ञक वस्तु को असत् नहीं कह सकते, इस को असत् कहने पर स्फोट की तरह अवयविद्रव्यप्रतीति को भ्रान्त कह कर अवयवी को 'असत्' कहना पडेगा। अवयवी को यदि सत् मानेंगे तो स्फोट को भी अवश्यमेव सत् मानना पडेगा, क्योंकि दोनों और युक्तियों का योगक्षेम तुल्य है। यह स्फोट वर्णों 15 से भिन्न एवं नित्य मानना होगा। अनित्य मानेंगे तो - सङ्केतकाल में जिस स्फोट में संकेत किया होगा वह नष्ट हो जाने के बाद अन्य देश अन्य काल में 'गौ' शब्दश्रवण के बाद (नष्ट स्फोट से)
खूध आदि उपांगवाले अर्थ का बोध नहीं होगा, क्योंकि अन्यदेश-काल में सुने गये (स्फोट में = शब्द में तो संकेत न होने से उस से अर्थबोध का सम्भव नहीं। सम्भव मानेंगे तो जिसने पहले कभी ‘गौ' शब्द नहीं सुना ऐसे अन्यदेश से आये हुए प्रवासी को अभी ‘गौ' शब्द के श्रवण से तुरंत ही धेनु- 20 अर्थ का बोध प्रसक्त होगा। एवं संकेत क्रिया भी व्यर्थ जायेगी। सारांश, स्फोटसंज्ञक शब्दवस्तु नित्य वं सर्वदेशव्यापक मानना चाहिये क्योंकि सर्व देश-काल में एकरूपता की अनुभूति होती है।
[स्फोटवादनिषेध अन्त्यवर्ण से अर्थबोध-वैशेषिक ] वैशेषिक विद्वानों का कहना है कि यह स्फोटवाद गलत है। हाँ इतना सही है कि एक साथ उत्पन्न वर्ण स्वार्थप्रदर्शक नहीं होते और क्रमिक उत्पन्न वर्गों का कोई समुदाय बन नहीं सकता। तो 25 अर्थबोध किस तरह होगा ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि पूर्व-पूर्व वर्गों के ध्वंस से सहकृत अन्त्य वर्ण की उपलब्धि से होगा। 'ध्वंस तो अभावरूप है वह कैसे किसी का सहकारी होगा - स्पष्ट विरोध है' – इस आशंका का उत्तर यह है कि जैसे वृक्ष पर वृन्त और फल के संयोग का नाश होता है तब उस से गुरुत्व प्रेरित फल अध: पतन क्रिया अप्रतिबद्ध होने से उत्पन्न होती है। तथा पूर्वसंयोगध्वंस सहकृत क्रिया से उत्तरसंयोग का उद्भव दिखता है। तथा, परमाणु में स्वगतपूर्वरूपप्रध्वंस के सहकार 30 से परमाणु-अग्निसंयोग रक्तरूप को उत्पन्न करता है यह दिखता है। वैसे यहाँ भी समझ लेना।
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