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खण्ड-३, गाथा-३२
३१९ न स्फोटस्यार्थप्रत्यायकता। अपि चैकदेशानामर्थप्रतिपत्तिहेतुत्वाभ्युपगमे च वरं वर्णानामेव तदभ्युपगतम् एवं लोकप्रतीतिरनुसृता भवेत्। अथाव्यतिरिक्तास्तदेकदेशास्तदा स्फोटस्यैकेनैव संस्कृतत्वाद् अपरवर्णोच्चारवैयर्थ्यम् । न च पूर्ववर्णसंवित्प्रभवसंस्कारसहितः तत्स्मृतिसहितो वाऽन्त्यवर्णः स्फोटसंस्कारका एवंभूतस्यास्यार्थप्रतिपत्तिजननेऽपि शक्तिप्रतिघाताभावात् स्फोटपरिकल्पना निरवसरैव। ___अपि च, स्फोटसंस्कारः स्फोटविषयसंवेदनोत्पादनम्, उतावरणापनयनम् ? यद्यावरणापनयनम् तदैक- 5 त्रैकदाऽऽवरणापगमे सर्वदेशावस्थितैः सर्वदा व्यापिनित्यरूपतयोपलभ्येत तस्य नित्यत्व-व्यापित्वाभ्यामपगतावरणस्य सर्वत्र सर्वदोपलभ्यस्वभावत्वात् । अनुपलभ्यस्वभावत्वे वा न केनचित् कदाचित् कुत्रचिदुपलभ्येत । अथैकदेशावरणापगमः क्रियते; नन्वेवमावृताऽनावृतत्वेन सावयवत्वमस्यानुषज्येत । अथ निर्विभागत्वादेकत्रानावृतः सर्वत्रानावृतोऽभ्युपगम्यते तदा तदवस्थाऽशेषदेशावस्थितैरुपलब्धिप्रसक्तिः । यथा च निरवयवत्वादेकत्राऽनावृतः सर्वत्राऽनावृतस्तथा तत एवैकत्राप्यावृतः सर्वत्रैवावृत इति मनागपि नोपलभ्येत । 10
किञ्च, एकदेशाः स्फोटादर्थान्तरम् अनर्थान्तरम् वा ? अर्थान्तरत्वेऽपि शब्दस्वभावाः अशब्दात्मका भिन्न मानने पर यह भी जान लो कि उन देशों से ही अर्थबोध हो जायेगा, स्फोट में अर्थबोधकता मानने की जरूर क्या ?, यदि एक देशों को अर्थबोधक मान लेंगे तो बहेतर है कि वर्णों को ही तथास्वरूप मान लिया जाय। तब लोकमान्य प्रतीति के साथ संवाद भी प्राप्त होगा। यदि एक देशों को अभिन्न मानेंगे तो उन में से एक देश से भी स्फोट संस्कृत हो जाने से अन्य वर्गों का उच्चारण 15 व्यर्थ ठहरेगा। ऐसा मत कहना कि – 'पूर्ववर्णज्ञान जन्य संस्कार से समर्थित, अथवा उस संस्कार से जन्य स्मृति से समर्थित अन्त्य वर्ण ही स्फोट को संस्कृत कर देगा' - निषेध कारण, तथाभूत अन्त्य वर्ण से अर्थबोध के उद्भव के लिये अन्त्यवर्ण की शक्ति का घात करनेवाला कोई न होने से, स्फोटकल्पना निरवकाश ही है। [ स्फोट में आवृत-अनावृतत्व से सावयवत्व दोष ]
20 __ यह भी ज्ञातव्य है - स्फोटसंस्कार क्या है ? स्फोटसंबन्धि विज्ञान का उद्भव या स्फोटावारक आवरण का निरसन ? यदि आवरण-निरसनरूप है, तो किसी एक जगह एक बार आवरण का भंग होने पर, नित्य एवं व्यापक होने से स्फोट की उपलब्धि सर्वदेशगत श्रोताओं को सदा के लिये हो । जायेगी। कारण :- स्फोट नित्य एवं व्यापक होने से उस का यह स्वभाव है कि आवरणमुक्त होने पर सर्वदेशों में सदा के लिये उपलब्धिगोचर होना। यदि ऐसा उस का (अनुपलब्धि) स्वभाव नहीं 25 है तो किसी भी श्रोता को कभी भी कहीं भी उस की उपलब्धि नहीं होगी। यदि किसी एक भाग में ही स्फोट के आवरण की मुक्ति मानेंगे तो अन्य भागों में सावरणता होने से, आवृतत्व-अनावृतत्व के कारण सावयवत्व प्रसक्त होगा। यदि स्फोट को निर्विभाग माना जाय तो एक जगह अनावृत होने पर सर्व जगह अनावृत माना जाय- इस के सामने समानतया यह तर्क आयेगा कि अन्य भाग में आवृत होने से सर्व जगह आवृत मानना पडेगा। फलतः अल्पतया भी उपलब्धिगोचर नहीं होगा। 30
[स्फोट और एक देशों का भेदाभेदविकल्प ] और एक बात :- स्फोट के विविध देश उस से भिन्न हैं या अभिन्न ? भिन्न हैं तो शब्दस्वभाव
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