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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ न च वनादिप्रत्ययतः शिंशपादिविशेषावगतिरिवात्रापि भविष्यतीति वक्तव्यम्, शिंशपादेः प्राक् प्रतिपत्तेर्वनादेश्व तद्धर्मतया वस्तुत्वात् परमाणूनां न कदाचनापि प्रतिपत्तिः। नापि तद्धर्मतया वस्तुत्वाभ्युपगम: स्थूलस्य पराभ्युपगमविषयः, वस्तुत्वाभ्युपगमे तु तस्य स्यात् सूक्ष्मव्यवस्थापकता, सूक्ष्मापेक्षितत्वात् स्थूलस्य, अन्यथा
तदयोगात्। सूक्ष्मपर्यन्तरूपश्च परमाणुः, तस्याभेद्यत्वात्। भेद्यत्वे वाऽवस्तुत्वापत्तेः तदवयवानां परमाणु5 त्वापत्तिः, भेदपर्यन्तलक्षणत्वात् परमाणुस्वरूपस्य।
न च ध्रौव्योत्पत्तिव्यतिरेकेण प्रतिक्षणविशरारुताऽणूनामपि सम्भवति। तयोरभावे एकक्षणस्थितिनामपि तेषामभावात् कुतो विनश्वरत्वम् ? अथ देश-कालनियतस्य स्थैर्याभावेऽपि क्वचित् कदाचित पदार्थस्य वृत्तेरन्यदाऽन्यत्र च निवृत्तिः। नैतदेवम्, अन्यदाऽन्यत्र चाऽवृत्तेरेवाऽनिश्चयात्। तथाहि-कार्य
एक अवयवी रूप कार्य अवस्तुभूत होने से स्वीकार्य नहीं है। अवस्तु किसी का निश्चायक (= साधक) 10 नहीं हो सकता। अन्यथा शशसींग भी गोशृंग का साधक बन बैठेगा। यदि स्थूल पदार्थ वस्तुभूत
मान लेंगे तो भी वह क्षणिक परस्परभिन्नपरमाणु का साधक नहीं हो सकता क्योंकि तब हेतु ही विरुद्ध होगा। (स्थूल स्थायि एक कार्य क्षणिक भिन्न सूक्ष्म का विरोधी है।) अग्नि का प्रतिभास कभी स्वविरुद्ध जल का निश्चायक हो नहीं सकता। शंका :- जैसे स्थूल एक भासमान जंगल की प्रतीति से सीसम
आदि विशेषों का बोध होता है वैसे यहाँ भी स्थूल कार्य भान से क्षणिक परमाणु आदि विशेषों 15 का अवबोध क्यो नहीं होगा ? उत्तर :- इस लिये कि वहाँ पहला बोध सीसम आदि का होता
है, बाद में समूहात्मक जंगल का उन के धर्मरूप से, क्योंकि समूहात्मक वन तो सीसम आदि का धर्म है, और दोनों ही वस्तु है एवं प्रत्यक्ष है। एक अवस्तु, दूसरी वस्तु ऐसा नहीं है।
दूसरी और परमाणुओं का तो कभी भी प्रत्यक्ष बोध होता नहीं है। तथा, क्षणिकवाद में परमाणुओं के धर्मरूप से स्थूल में वस्तुत्व का स्वीकार किया नहीं जाता। हाँ यदि स्थूल को (अवयवी को) 20 वस्तुरूप स्वीकारा जाय तो उस के सूक्ष्म अवयवरूप से परमाणुओं की निश्चायकता मानी जा सकती
है, क्योंकि स्थूल हमेशा सूक्ष्मसापेक्ष ही होता है, अन्यथा सूक्ष्मता की संगति ही नहीं होगी। सुक्ष्मता की चरम सीमा ही परमाणु हैं, क्योंकि वह अभेद = अविभाज्य है। अथवा उसे विभाज्य मानेंगे तो उन में अवस्तुत्व की आपत्ति होगी। स्थूल एवं परमाणु से अतिरिक्त हो वह शशसींगवत् अवस्तु होती
है। तथा, परमाणु का भी भेद होने पर उन के अवयवों में ही वास्तव परमाणुत्व संगत होगा, क्योंकि 25 भेद की चरम सीमा ही परमाणु का स्वरूप होता है।
__ स्थैर्य एवं उत्पत्ति के बिना प्रतिक्षणविनाश भी अणुओं का सिद्ध नहीं होगा, उत्पत्ति के बिना अणु ही नहीं होगा तो विनाश किस का ? स्थैर्य के विना एक क्षण अवस्थिति कैसे रहेगी ? इन दोनों के अभाव में विनश्वरता कैसे घटेगी ? शंका :- प्रत्येक अणु की नियतदेशीयता और नियतकालता
स्वभावतः ही होती है। अतः बिना स्थैर्य के नियत देश-काल में स्वभावमूलक परमाणु की वृत्ति हो 30 जायेगी, अन्य देशकाल में उन का विरह रहेगा। उत्तर :- यह शंका वास्तविक नहीं है, अन्य देश
काल में विरह का निश्चय कौन कैसे करेगा ? देखिये - कार्य-कारण (पूर्वक्षण की और उत्तर क्षण की वस्तु) में परस्परभेद किस तरह मानेंगे ? क्या यह भेद कथंचित् ओतप्रोत एक आकार धारण
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